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आगम
(०५)
"भगवती"- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [४०], वर्ग -], अंतर्-शतक [१], उद्देशक [१-११], मूलं [८६४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
व्याख्या-रड्या
इत्थीवेदगा वा पुरिसवेदगा वा नपुंसगवेदगा वा अवेदगा वा इथिवेदवंधगा वा पुरिसवेदबंधगा वा नपुंस- ४० शतके प्रज्ञप्ति: गवेदबंधगा या अपंधगा चा, सन्नी नो असन्नी सइंदिया नो अणिदिया संचिट्ठणा जहनेणं एक समयं उको-IX| संज्ञिपञ्चेअभयदेवी- || सेणं सागरोपमसयपुद्धत्तं सातिरेगं आहारो तहेव जाब नियम छद्दिसिं ठिती जहन्नेणं एक समयं कोसेणं |
न्द्रियाः या वृत्तिः२ तेत्तीसं सागरोषमाई छ समुग्घाया आदिल्लगा मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयाचि मरति असमोहयावि |
| सू०८६४ ॥९७२ ॥ मरति, उवट्टणा जहेव उववाओ न कत्थइ पडिसेहो जाव अणुत्तरविमाणत्ति, अह भंते! सबपाणा जाव
|अणतखुत्तो, एवं सोलसुवि जुम्मेसु भाणिय जाव अणंतखुत्तो, नवरं परिमाणं जहा येईदियाण सेसं तहेव । सेवं भंते ! २त्ति ॥४०॥१॥ पढमसमयकडजुम्मरसन्निपंचिंदिया णं भंते! कओ उववजन्ति ?, उववाओ परिमाणं आहारो जहा एएसिं चेव पढमोदेसए ओगाहणा बंधो वेदो वेदणा उदयी पदीरगा य जहा बेन्दियाणं पढमसमयाणं तहेव कण्हलेस्सा वा जाव सुकलेस्सा बा, सेसं जहा वेन्दियाणं पढमसमइयाणं जाव अणं-टू तखुत्तो नवरं इत्धिवेदगा वा पुरिसवेदगा वा नपुंसगवेदगा वा सन्निको असन्नीणो सेसं तहेव एवं सोलसुवि जुम्मेसु परिमाणं तहेव सबं । सेवं भंते!२ त्ति ॥ ४०॥२॥ एवं एस्थवि एक्कारस उद्देसगा तहेव,
पढमो तइओ पंचमो य सरिसगमा सेसा अट्टविसरिसगमा, चउत्थअट्ठमदसमेसु नस्थि विसेसो कायIE||बो। सेवं भंते ! २ति॥ (सूत्रं ८६४)॥४. सने पढमसनिपंचिंदियमहाजुम्मस सम्मत्तं ।।
॥९७२।।
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