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आगम
(०५)
"भगवती"- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [३५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [१], उद्देशक [२-११], मूलं [८५७-८५८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
पढमसमयकडजुम्मरएगिदिया णं भंते ! कओ उववजंति ?, गोयमा! तहेव एवं जहेव पढमो उसओ तहेव सोलसखुत्तो वितिओवि भाणियचो, तहेव सई, नवरं इमाणि घ दस नाणत्ताणि-ओगाहणा जहन्नेणं । | अंगुलस्स असंखेजहभागं उनोसेणवि अंगुलस्स असंखेजह आउयकम्मस्स नो बंधगा अयंधगा आज्यस्स ||M |नो उदीरगा अणुदीरगा नो उरसासगा नो निस्सासगा नो उस्सासनिस्सासगा सत्तविहबंधगा नो || ४ अढविहवंधगा, ते णं भंते! पढमसमयकडजुम्मरएगिदियत्ति कालओ केवचिरं होइ?, गोयमा! | एक समयं, एवं ठितीएवि, समुग्घाया आदिल्ला दोन्नि, समोहया न पुच्छिजंति उच्चणा न पुच्छिज्जर, सेसं तहेव सर्व निरवसेसं, सोलमुवि गमएसु जाव अर्णतखुत्तो। सेवं भंते!२त्ति (मत्र ८५७) ॥ ३५॥२॥ अपढमसमयकडजुम्मरएगिदियाण भंते ! कओ उववजंति?, एसो जहा पढमुद्देसो सोलसहिवि जुम्मेसु तहेव नेयो जाव कलियोगकलियोगत्ताए जाव अणंतखुत्तो । सेवं भंते! २त्ति ॥ ३५॥३॥ चरमसमयकाजुम्मरएगिदिया णं भंते ! कओहिंतो उवचजति ?, एवं जहेव पढमसमयउद्देसओ नवरं देवा न उचवज्जंति तेउलेस्सा न पुकिछ जति, सेसं तहेव । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति ॥ ३५॥४॥ अचरमसमयकडजुम्मरएगिदिया णं भंते ! कओ| | उपवर्जति जहा अपढमसमयउद्देसो तहेव निरवसेसो भाणियो । सेवं भंते ! २त्ति ॥ ३५॥५॥ पढमसम| यकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कओहिंतो उववजति !, जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव निरवसेसं । | सेवं भंते! २त्ति जाव विहरह ॥ ३६॥ पढमअपढमसमयकडजुम्म २ एगिदिया णं भंते ! कओ उजव-||
~ 1939~