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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [३४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [१], उद्देशक [१], मूलं [८५१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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व्याख्या-1 सुहमपुढविकाइयत्ताए एगपयरंमि अणुसेडीए उववजित्तए से णं तिसमइएणं विग्गहेणं उघवजेजा जे भविए ३४ शतक प्रज्ञप्ति विसेढीए उचवजित्तए से णं चउसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा से तेण?णं जाव उववज्बेजा, एवं पज्जत्तमुहु-उद्दे.१अधः अभयदेवी- मपुढविकाइयत्ताएऽवि, एवं जाव पजत्तसुहुमतेउकाइयत्ताए, अपजत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! अहेलोग या वृत्तिः२४ जाव समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपजत्तवायरतेउकाइयत्ताए उववजित्सए से णं भंते !, कइसमइएणं
नामूर्खा
दादावुत्पादः १९५७॥ | विग्गहेणं उववज्जेज्जा?, गोयमा! दुसमइएण चा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववजेजा, से केणद्वेणं?, एवं ||
सू.८५१ | खलु गोयमा! मए सत्त सेढीओ प०, तं०-उजुआयता जाव अदचक्कवाला, एगओवंकाए सेढीए उववज-15 माणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा दुहओवंकाए सेटीए उववजमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा से तेणटेणं०, एवं पजत्तएसुवि वायरतेउकाइएमुवि उववाएयचो, वाउकाइयवणस्सइकाइयत्ताए चउक्कएर्ण भेदेणं | 31 जहा आउकाइयत्ताए तहेव उववाएयचो २०, एवं जहा अपज्जत्तसुहमपुढविकाइयस्स गमओ भणिओ एवं| | पजत्तमुहमपुढविकाइयस्सवि भाणियचो तहेव वीसाए ठाणेसु उववाएयत्वो ४०, अहोलोयखेत्तनालीए
बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए समोहएत्ता एवं वायरपुडषिकाइयस्सवि अपजत्तगस्स पजत्तगस्स य भाणियब 1८०, एवं आउक्काइयस्स चउविहस्सवि भाणिय, १६०, सुहमतेउकाइयस्स दुविहस्सवि एवं चेव २००, अप- |जत्तवायरतेउक्काइए णं भंते! समयखेते समोहए स. २जे भविए उहलोगस्वेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते! कइसमइएणं विग्गणं उववजेजा, गोयमा! दुस-13
ACXRCOCABRDAR
~ 1918~