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आगम
(०५)
“भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः)
शतक [३४], वर्ग [-], अंतर् शतक [१], उद्देशक [१], मूलं [८५० ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २
॥ ९५५ ॥
आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
ठाणेसु उववाएयधो जाव बादरवणस्सइकाइएस पज्जत्तएसुचि ४०, एवं अपजन्तबादरपुढविकाइओवि ६०, एवं पज्जत्तबादरपुढविकाइओवि ८०, एवं आउकाइओवि उवि गमएस पुरच्छिमिले चरिमंते समोहए एयाए चैव वतनयाए एए चैव वीसठाणेसु उववाहो १६०, सुहुमतडेकाइओवि अपलत्तओ पज्जतओ य एएस चैव वीसाए ठाणेसु उबवायचो, अपजत्तवायरतेडकाइए णं भंते! मनुस्सखेत्ते समोहए २ जे भविए इमीसे रयणप्पभाष पुढवीए पञ्चच्छिमिले चरिमंते अपलत्तम पुढविकाइयत्ताए उववजित्तर से भंते! कइसमइएणं विग्गणं उववज्जेजा सेसं तहेव जाव से तेणद्वेणं० एवं पुढविकाइएस चउविसुवि उववायवो, एवं आउकाइएस चउविहेसुवि, ते काइएस सुहृमेसु अपजन्तपसु पजत्तएस य एवं चेव उवाएयवो, अपजत्तवाय रते उक्काइए णं भंते । मणुस्सखेन्ते समोहए समो० २ जे भविए मणुस्सखे से अपज्जन्त्तबाय| रतेउका इयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते! कतिसम० १, सेसं तं चेव, एवं पत्तवायरते उक्का इयत्ताएवि उबवायवो वाउकाइयत्ताए य वणस्सइकाइयत्ताए य जहा पुढविकाइएस तहेव चक्करणं भेदेणं उबवायवो, एवं पज्जत्तवायरतेजकाइओऽवि समयखेत्ते समोहणावेत्ता एएस चेच बीसाए ठाणेसु उबवायवो जहेव अपजत्तओ उबवाइओ, एवं सवत्थवि बायरतेडकाइया अपज्जन्तगा य पज्जत्तगा य समयखेत्ते उबवाएयवा समोहणावेयवावि २४०, वाउक्काइया वणस्सकाइया य जहा पुढविकाइया तहेव चक्करणं भेदेणं उववारयद्दा जाव पज्ञता ४०० || बायरवणस्स इकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढचीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए समोह एसा
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~ 1914~
३४ शतके
उद्दे. १
पृथ्व्यादीनामुत्पादः
सू ८५०
॥ ९५५ ॥
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