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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [३०], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [१], मूलं [८२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [८२४]
लाई समोसरणाई जाव अणागारोवउत्तावि, एवं जाव चउरिदियाणं सबहाणेसु एयाई चेव मझिल्लगाईXI द्र दो समोसरणाई, सम्मत्तनाणेहिदि एयाणि चेच मज्झिल्लगाई दो समोसरणाई, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया *जहा जीवा नवरं जं अस्थि तं भाणियवं, मणुस्सा जहा जीवा तहेब निरवसेसं, वाणमंतरजोइसिपवेमाणिया|| 3/जहा असुरकुमारा ॥ किरियावादी णं भंते! जीवा किं नेरइयाउयं पकरेइ तिरिक्खजोणियाउयं पकरेइ मणु-॥x |स्साज्यं पकरेह देवाउयं पकरेइ ?, गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ नो निरिक्खजोणियाउयं पकरो मणस्सा
यपि पकरेह देवाज्यपि पकरेइ, जइ देवाउयं पकरेइ किं भवणवासिदेवाउयं पकरेइ जाव चेमाणियदेवाउयं| |पक०१, गोयमा नो भवणवासीदेवाउयं प० नो वाणमंतरदेवाउयं पक० नो जोइसियदेवाउयं पकरेह वेमा-|| [णियदेवाज्यं पकरेइ । अकिरियावादी णं भंते! जीवा किं नेरइयाउयं पकरेइ ? तिरिक्ख. पुच्छा, गोयमा नेरइयाउयपि पकरेइ जाव देवाउयंपि पकरेइ, एवं अन्नाणियवादीवि वेणइयवादीवि। सलेस्सा णं भंते जीवा किरियावादी किं नेरहयाउयं पकरेइ? पुच्छा, गोपमा! नो नेरइयाउयं एवं जहेब जीवा तहेव सलेस्साथि
चउहिवि समोसरणेहिं भाणियबा, कपहलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी किं नेरइयाउयं पकरे। Mपुच्छा, गोयमा ! नो नेरहयाउयं पकरेह नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेइ मणुस्साउयं पकरेद नो देवाउयं । प्रापकरेइ, अकिरिय० अन्नाणियवेणइयवादी य चत्तारिवि आउयाई पकरेइ, एवं नीललेस्सावि, तेउलेस्सा गं
भंते । जीवा किरियावादी कि नेरदयाउयं पकरेइ ? पुच्छा, गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेइ नो तिरिक्त
दीप
अनुक्रम [९९८]
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व्या.१५८
समवसरण, तस्य क्रियावादि आदि चत्वार: भेदा: एवं प्रत्येक-भेदस्य वक्तव्यता
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