SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [६२] दीप अनुक्रम [८४] ““भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः ) शतक [१], वर्ग [-], अंतर् शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [६२ ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः Eticatin से णं जीवे धम्मकामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए धम्मर्कखिए पुण्णकंखिए सग्गमोक्स्खकं० धम्मपिवासिए पुण्णसग्गमोक्खपिवासिए तच्चित्ते तम्मणे तलेसे तदज्झवसिए तत्तिब्वज्झवसाणे तदट्ठोवउप्ते तद्| पियकरणे तन्भावणाभाविए एयंसि णं अंतरंसि कालं करे० देवलो० उव०, से तेणद्वेणं गोयमा !0 । जीवे णं भंते ! गग्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिलए वा अंबखुजए वा अच्छेल वा चिद्वेल्ल वा निसीएज वा तुयहेज वा माऊए सुयमाणीए सुबह जागरमाणीए जागरइ सुहियाए सुहिए भवइ दुहियाए दुहिए भवइ ?, हंता गोयमा ! जीवेणं गभगए समाणे जाच दुहियाए दुहिए भवइ, अहे णं पसवणकाल समयंसि सीसेण वा पाएहिं वा आगच्छइ सममागच्छइ तिरियमागच्छ विणिहायमागच्छ ॥ वण्णवज्झाणि य से कम्माई पढ़ाई पुट्ठाई निहत्ताई कडाई पट्टवियाई अभिनिविद्वाई अभिसमन्नागयाई उदिन्नाई नो उबसंताई भवंति तओ भवद्द दुरूवे दुब्वन्ने दुग्गंधे दूरसे दुष्फासे अणिट्टे अनंते अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणामे हीणस्सरे दीणसरे अणिस्सरे अकंतस्सरे अपियस्सरे असुभस्सरे अमणुन्नस्सरे अमणामस्सरे अणाज्जवयणे पञ्चायाए यावि भवइ, वन्नवज्झाणि य से कम्माई नो बढाई पसत्थं नेयव्यं जाव आदेजवयणं पञ्चायाए यावि भवइ, सेवं भंते ! सेवं भंते । ( सू० ६२ ) ति सत्तमो उद्देसो समत्तो ॥ १-७ ॥ 'भगए समात्ति गर्भगतः सन् मृत्येति शेषः 'एमइए'त्ति सगर्वराजादिगर्भरूपः, सञ्ज्ञित्वादिविशेषणानि च गर्भस्थस्यापि नरकप्रायोग्यकर्मबन्धसम्भवाभिधायकतयोक्तानि वीर्यलब्ध्या वैक्रिय लब्ध्या संग्रामयतीति योगः, अथवा For Plata Lise Only ~ 183~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy