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आगम
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [७९८]
(०५)
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५]
"भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [७९८]
गोयमा ! जहन्नेणं देसूणाई दो वाससयाई उको० देसूणाओ दो पुचकोडीओ, सुहमसंपरागसंजया णं भंते ! "पुच्छा, गोयमा ! जह० एक समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं, अहक्खायसंजया जहा सामाइयसंजया २९ ॥४ सामाइथसंजयस्सरणं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ?, गोयमा ! जहन्नेणं जहा पुलागस्स एवं जाव अहक्खायसंजयस्स, सामाइयसं० भंते ! पुच्छा, गोयमा! नत्थि अंतरं, छेदोवट्ठावणिय पुच्छा, गोयमा! जहनेणं तेवहि वाससहस्साई उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकाडीओ, परिहारविमुद्धियस्स पुच्छा, गोयमा! जहन्नेणं चउरासीई वाससहस्साई उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ, सुहमसंपरायाणं जहा नियंठाणं, अहक्खायाणं जहा सामाइयसंजयाणं ३०॥सामाइयसंजयस्स णं भंते ! कति समुग्धाया पन्नत्ता, गोयमा! छ समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहाकसायकुसीलस्स, एवं छेदोवट्ठावणियस्सवि, परिहारविमुद्धियस्स जहा पुलागस्स, सुहमसंपरागस्स जहा नियंठस्स, अहक्खायस्स जहा सिणायस्स ३१ ॥ सामाइयसंजए णं भंते ! लोगस्स किं संखेज्जइभागे होजा असंखेजाभागे पुच्छा, गोयमा ! नो संखेजइ जहा पुलाए, एवं जाव सुहमसंपराए । अहक्वायसंजए जहा सिणाए ३२॥ सामाइयसंजए णं भंते ! लोगस्स किं संखेजहभागं फुसइ जहेव होजा तहेव फुसइ ३३ ॥ सामाइयसंजए णं भंते ! कयरंमि भावे होज्जा, गोयमा! उवसमिए भावे होजा, एवं जाच मुहमसंपराए, अहक्खायसंपराए पुच्छा, गोयमा ! उवसमिए वा खइए वा भावे होजा ३४ । सामाइयसंजयाणं भंते ! एगसमएणं केवतिया होजा?, गोयमा ! पडिवजमाणए य पहुच जहा
दीप
अनुक्रम [९५३]
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संयत, तस्य स्वरुपम्, सामायिकसंयत आदि पञ्च-भेदा:, संयतस्य विविध-वक्तव्यता
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