________________
आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [२५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [५], मूलं [७४६-७४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [७४६-७४८]
व्याख्या-3 एवं सागरोवमेवि एवं ओसप्पिणीवि उस्सप्पिणीवि, पोग्गलपरियहे पुच्छा, गोयमा! नो संखेज्जाओ आव-२५ शतके
प्रज्ञप्ति अभयदेवी
|लियाओ णो असंखेजाओ आवलियाओ अणंताओ आवलियाओ, एवं जाव सबद्धा । आणापाणूणं भंतेपद उद्देशः ५ या वृत्तिः२
किं संखेजाओ आवलियाओ? पुच्छा, गोयमा ! सिय संखेजाओ आवलियाओ सिय असंखेज्जाओ सियापर्यवाः आ
अणंताओ, एवं जाच सीसपहेलियाओ, पलिओवमाणं पुच्छा, गोयमा ! णो संखेजाओ आवलियाओ सिया बालकाला 1८८८॥ असंखेजाओ आवलियाओ सिय अणंताओ आवलियाओ एवं जाव उस्सप्पिणीओ, पोग्गलपरियट्टाणं पुच्छा,
नां समया
दिसू गोयमा ! णो संखेजाओ आवलियाओ णो असंखेजाओ आवलियाओ अर्णताओ आवलियाओ। थोवे XEY
भंते ! किं संखेजाओ आणापाणूओ असंखेजाओ जहा आवलियाए वत्तवया एवं आणापाणूवि निरवसेसा, ह एवं एतेणं गमएणं जाव सीसपहेलिया भाणियवा । सागरोवमे णं भंते ! किं संखेजा पलिओवमा ? पुच्छा, गोयमा! संखेजा पलिओवमा णो असंखेजा पलिओवमा णो अणंता पलिओवमा, एवं ओसप्पिणीएवि उस्सप्पिणीएवि, पोग्गलपरियहे णं पुच्छा, गोयमा! णो संखेजा पलिओवमा णो असंखेचा पलिओवमा | अणंता पलिओवमा एवं जाव सबद्धा । सागरोवमाणं भंते ! किं संखेजा पलिओवमा? पुच्छा, गोयमा! | सिय संखेजा पलिओवमा सिय असंखिज्जा पलिओवमा सिय अर्णता पलिओषमा, एवं जाव ओसप्पिणीवि* 1८८८॥ | उस्सप्पिणीवि । पोग्गलपरियहाणं पुच्छा, गोयमा! णो संखेजा पलिओवमा णो असंखेज्जा पलिओवमा अर्णता पलिओवमा । ओसप्पिणी णं भंते! किं संखेजा सागरोवमा जहा पलिओवमस्स बत्तबया तहा
दीप
अनुक्रम
[८९३
-८९५]
समय-संख्या: गणितं
~ 1780 ~