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आगम
(०५)
प्रत
सूत्रांक
[७२८]
दीप
अनुक्रम [८७४]
“भगवती”- अंगसूत्र-५ ( मूलं + वृत्ति:)
शतक [२५], वर्ग [-], अंतर् शतक [-] उद्देशक [३], मूलं [ ७२८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
नो असंखे० अनंताओ, पाईणपडीणायताओं णं भंते ! सेढीओ वट्टयाए किं संखेजाओ एवं चेव ३, एवं दाहिणुत्तरायताओबि एवं उमहायता ओवि । लोगागाससेडीओ णं भंते! दबट्टयाए किं संखेजाओ असंखेजाओ अनंताओ ?, गोयमा ! नो संखेज्जाओ असंखेजाओ तो अनंताओ, पाईणपडीणायताओ णं भंते! लोगागा ससेदीओ दट्टयाए क्रिं संखेजाओ एवं येव, एवं दाहिणुत्तराययाओवि एवं उडुमहायताओवि अलोयागास सेढीओ णं भंते! दट्ट्याए किं संखेजाओ असंखेजाओ अनंताओ ?, गोयमा ! नो संखेज्जाओ नो असंखेजाओ अणताओ, एवं पाईणपडीणाययाओवि एवं दाहिणुत्तराययाओवि एवं उहमहायताओवि । | सेढीओ णं भंते! पएसघाए किं संखेजाओ जहा दबट्टयाए तहा पएसइयाएवि जाव उमहाययाओवि साओ अनंत० । लोयागास सेडीओ भंते! पएस० किं संखेनाओ पुच्छा, गोयमा । सिप संखे० सिय असं० नो अनंताओं एवं पाईणपडीणायताओ दाहिणुत्तरायताओवि एवं चैव उमहायताओवि नो संखेजाओ असंखे० नो अनंताओ ॥ अलोगागाससेडीओ णं भंते! पएसहयाए पुच्छा, गोपमा ! सिय संखे० सिय असं० सिय अनंताओ पाईणपडीणाययाओ णं भंते! अलोया० पुच्छा, गोयमा ! नो संखेजाओ तो असंखेजाओ अनंताओ, एवं दाहिणुत्तरायताओवि, उडुमहायताओ पुच्छा, गोयमा ! सिय संखेजाओ सिय असं० सिय अनंताओ (सूत्रं ७२८ ) ॥
'सेटी' त्यादि, श्रेणीशब्देन च यद्यपि पङ्किमात्रमुच्यते तथाऽपीह काशप्रदेशपङ्कयः श्रेणयो ग्राह्याः, तत्र श्रेणयोऽविवक्षितलोकालोकभेदत्वेन सामान्याः १ तथा ता एवं पूर्वापरायताः २ दक्षिणोत्तरायताः ३ ऊर्द्धाधिआयताः ४, एवं लो
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