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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [१३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [५३-५४]
गाथा:
लोयंते य सत्तमे य तणुवाए, एवं घणवाए घणोदहि सत्तमा पुढवी, एवं लोयंते एकेकेणं संजोएयव्वे इमेहि 3 ठाणेहिं-तंजहा-ओवासवायघणउदहि पुढवी दीवा य सागरा वासा । नेरइया अस्थिय समया कम्माई
लेस्साओ॥१॥ दिही दसण णाणा सन्न सरीरा य जोग उवओगे। दवपएसा पज्जव अहा कि पुल्वि लोयंते? H॥२॥ पुब्धि भते । लोयंते पच्छा सब्चद्धा ? । जहा लोयंतेणं संजोइया सव्वे ठाणा एते एवं अलोयंतेणवि संजोएयव्वा सव्वे । पुब्धि भंते ! सत्तमे उवासंतरे पच्छा सत्तमे तणुवाए, एवं सत्तम उवासंतरं सब्वेहि समं संजोएयव्वं जाव सब्बहाए । पुचि भंते ! सत्समे तणुवाए पच्छा सत्तमे घणवाए, एयपि तहेव नेयध्वं जाव सब्बद्धा, एवं उबरिल्लं एककं संजोयंतेणं जो जो हिडिल्लो तं तं छडुतेणं नेयव्वं जाव अतीयअणागयद्धा पच्छा सब्बद्धा जाव अणाणुपुब्वी एसारोहा! सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति! जाव विहरइ॥ (सू.५३) भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं जाव एवं बयासी-कतिविहा गं भंते ! लोयहिती पण्णता ?, गोयमा ! अढविहा लोयद्विती पण्णत्ता, तंजहा-आगासपइडिए वाए १ वायपइटिए उदही २ उदहीपइडिया पुढवी ३ पुढविपइडिया तसा थावरा पाणा ४ अजीवा जीवपइटिया ५ जीवा कम्मपइडिया ६ अजीवा जीवसंगहिया ७ जीवा कम्मसंगहिया ८। से केणढेणं भंते ! एवं बुच्चइ !-अट्टविहा जाय जीवा कम्मसंगहिया ?, गोयमा ! से जहानामए-केइ है पुरिसे वस्थिमाडोवेइ पत्थिमाडोबित्ता उपि सितं बंधइ २ मज्झेणं गठिं बंधई २ उवरिल्लं गठिं मुयइ २ उच-18 रिलं देसं वामेइ २ उवरिल्लं देसं वामेत्ता उवरिल्लं देसं आउयायस्स पूरेइ २ उपिसि तं बंधइ २ मज्झिलं
दीप
अनुक्रम [७२-७६]
| रोहक-अनगार कृत् विविध प्रश्न: एवं भगवत: उत्तराणि
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