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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [ ७०२] दीप अनुक्रम [८४७] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्ति:) शतक [२४], वर्ग [-], अंतर् शतक [-] उद्देशक [१२] मूलं [ ७०२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥८२७॥ सस्था अणुबंधो जहा ठिती संवेहो तहेब आदिल्लेसु दोसु गमएसु तइयगमए भवादेसो तहेव अट्ठ भवग्गहणाई कालादेसेणं जहनेणं बावीस वाससहस्साई अंतोमुत्तमम्भहियाई उक्कोसेणं अट्ठासीतिं वाससहस्साई चउहिं अंतोमुहतेहिं अमहियाई ६, सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीओ जाओ एयस्सवि ओहियगमगसरिसा तिनि गमगा भाणिया नवरं तिसृवि गमएस ठिती जहन्नेणं वारस संबच्छराई उक्कोसेणवि बारस संवच्छराई, एवं अणुबंधोवि, भवादे० जह० दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई, कालादे० उवजुज्जिऊण भाणियां जाव णबमे गमए जहनेणं बावीसं वाससहस्साई बारसहिं संच्छरेहिं अम्महि० उक्कोसे० अट्ठासीती वाससहस्साई अडयालीसाए संबच्छरेहिं अम्महियाई एवतियं ९ ॥ जइ तेईदिएहिंतो उववज्जइ एवं चैव नव गमगा भाणिया नवरं आदिलेसु तिसुवि गमएस सरीरोगाहणा जहनेणं अंगुलस्स असंखेबइ भागं उक्कोसेणं तिन्नि गाउपाई तिन्नि इंदियाई ठिती जहनेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं एगूणपनं राईदियाई, तइयगमए कालादेसेणं जहनेणं बाबीसं वाससहस्साइं अंतोमुत्तमम्भहियाई उक्कोसेणं अट्ठासीति | वाससहस्साई छन्नउई राईदियस्यमन्महियाई एवतियं०, मज्झिमा तिन्नि गमगा तहेव पच्छिमषि तिन्नि गमगा तहेव नवरं ठिती जहशेणं एकूणपन्नं राइंदियाई उक्कोसेणचि एगूणपन्नं राइंदियाई संवेहो उबजुंजिऊण भाणियो ९ ॥ जइ चउरिदिएहिंतो उबवजह एवं चैव चरिंदियाणवि नव गमगा भाणिया नवरं | एतेसु चेव ठाणेसु नाणत्ता भाणियता सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसे० चत्तारि Internationa For Park Use Only ~1658~ २४ शतके उद्देशः १२ द्वीन्द्रियादिभ्यः पृअध्युत्पादः सू ७०२ ॥८२७॥
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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