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आगम
(०५)
"भगवती"- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१७], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६-१७], मूलं [६०४-६१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती"मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६०४६१५]
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यत्ताए उववजित्तए एवं जहा पुढविकाइओ तहा आउकाइओबि सबकप्पेसु जाच इसिपम्भाराए तहेव उववाएयचो एवं जहा रयणप्पभाआउकाइओ उववाइओ तहा जाब अहेसत्तमापुढविआउकाइओ उववाएयचो जाव ईसिपम्भाराए, सेवं भंते ! २॥ (सत्रं ६०६)॥१७-८॥ आउकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पेसमोहए समोह जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढचीए घणोदधिबलएसु आउकाइयत्ताए उववजित्तए
से ण भंते ! सेसं तं चेव एवं जाव अहेसत्तमाए जहा सोहम्मआउकाइओ एवं जाय ईसिपम्भाराआउका४|इओ जाव अहेसत्तमाए उववाएयबो, सेवं भंते ! २॥ (सूत्र ६०७)॥१७-९॥ बाउक्काइए णं भंते ! इमीसे | रयणप्पभाए जाव जे भविए सोहम्मे कम्मे वाउक्काइयत्ताए उवव जित्तए से णं जहा पुढविकाइओ तहा वांउकाइओवि नवरं वाउक्काइयाणं चत्तारि समुग्धाया पं०, तं०-वेदणासमुग्घाए जाव वेउवियसमुग्याए, मारणंतियसमुग्धाएणं समोहणमाणे देसेण वा समो० सेसं तं चेव जाव अहेसत्तमाए समोहओ ईसिपन्भाराए द उववाएयचो, सेवं भंते !२॥ (सूत्रं ६०८)॥१७-१०॥ वाउचाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए स०२
जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाए तणुचाए घणवायवलएसु तणुवायवलएसु चाउकाइयत्ताए | उववाओत्सए से गंभंते ! सेसं तं चेव एवं जहा सोहम्मे वाउकाइओ सत्तसुवि पुढवीसु उबवाइओ एवं जाव इसिपब्भाराए वाउचाइओ अहेसत्तमाए जाव उवधाएयचो, सेवं भंते! २॥ (सूत्रं ६०९) ॥१७-११ ॥ एगिदियाणं भंते ! सधे समाहरा सवे समसरीरा एवं जहा पढमसए वितियउद्देसए पुढविकाइयाणं बत्त
दीप अनुक्रम
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