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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [-], मूलं [५५०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [५५०]
रिहारे पंच कम्मणि सयसहस्साई सद्धिं च सहस्साई छच्च सए तिन्नि य कम्मंसे अणुपुत्वेणं खवइत्ता तओट
पच्छा सिझंति बुझंति मुचंति परिनिवाइंति सबदुक्खाणमंतं करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा, से जहा दिवा गंगा महानदी जओ पवूढा जहिं वा पजुवत्थिया एस णं अपंचजोयणसपाई आयामेणं अजोयणं ।
विक्खंभेणं पंच धणुसयाई उवेहेणं एएणं गंगापमाणेणं सत्त गंगाओ सा एगा महागंगा सत्त महागंगाओ| |सा एगा सादीणगंगा सत्त सादीणगंगाओ सा एगा मचुगंगा सत्त मधुगंगाओ सा एगा लोहियगंगा सत्त || लोहियगंगाओ सा एगा आवतीगंगा सत्स आवतीगंगांओ सा एगा परमावती एवामेव सपुचावरेणं एगं| गंगासयसहस्सं सत्तर सहस्सा छचगुणपन्नगंगासया भवंतीति मक्खाया, तार्सि दुविहे उद्धारे पपणते, संजहा-सुहुमबोंदिकलेवरे चेव बायरबोंदिकलेचरे चेव, तत्थ णं जे से सुहमयोंदिकलेवरे से ठप्पे तत्थ णं जे से बायरबोंदिकलेवरे तो णं वाससए २ गए २ एगमेगं गंगावालुयं अवहाय जावतिएणं कालेणं से कोडे | खीणे णीरए निल्लेवे निहिए भवति सेसं सरे सरप्पमाणे, एएणं सरप्पमाणेणं तिनि सरसयसाहस्सीओ से एगे महाकप्पे चउरासीइ महाकप्पसयसहस्साई से एगे महामाणसे, अणंताओ संजूहाओ जीवे चर्य चइत्सा उवरिल्ले माणसे संजूहे देवे उववजति, से णं तत्थ दिवाइंभोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ विहरिता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता पढमे सन्निगन्भे जीवे पञ्चायाति, से तओहिंतो अणंतरं उच्चट्टित्ता मज्झिल्ले माणसे संजूहे देवे उववजह से तत्थ दिवाई भोगभोगाई जाव
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दीप अनुक्रम [६४८]
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गोशालक-चरित्रं
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