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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१४], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [८], मूलं [५२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५२७] व्याख्या इति, उक्तश-"ईसीपम्भाराए उवरिं खलु जोयणस्स जो कोसो । कोसस्स य छन्भाए सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥१॥" १४ शतके | इति । [ईपत्यारभाराया उपरि योजनस्य यः क्रोशः खलु क्रोशस्य च षष्ठो भागः एषा सिद्धानामवगाहना भणिता॥१॥] उद्देश: अभयदेवी- देसूर्ण जोयणति इह सियलोकयोर्देशोनं योजनमन्तरमुक्तं आवश्यके तु योजनमेव, तत्र च किश्चिन्यूनताया अविव- शालतोष्ट या वृत्तिः२ |क्षणान्न विरोधो मन्तव्य इति ॥ अनन्तरं पृथिव्याधन्तरमुक्तं तच्च जीवानां गम्यमिति जीवविशेषगतिमाश्रित्येदं wer: नामेकावता 13 सूत्रत्रयमाह॥६५२॥ . एस गंभंते ! सालरुक्खे उपहामिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए कालमासे कालं किवा कहिंडू रतासू५२८ गच्छिहिति कहिं उववजिहिति ?, गोयमा ! इहेव रायगिहे नगरे सालरुक्खत्ताए पचायाहिति, से णं तत्थल 8 अचियर्वदियपूइयसकारियसम्माणिए दिवे संचे सच्चोवाए सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइयमहिए यावि भविदस्सइ, से णं भंते ! तओहिंतो अणंतरं उचट्टित्ता कहिं गमिहिति कहिं उववजिहिति, गोषमा ! महाविदेहे द्र वासे सिसिहिति जाव अंतं काहिति ॥एस भंते साललट्टिया उपहाभिहया तण्णामिहया दवग्गिजालाभिया : कालमासे कालं किच्चा जाव कहिं उववजिहिति ?, गोयमा! इहेव जंबूद्दीवे २ भारहे वासे विज्झगिरिपायमूले | महेसरिए मगरीए सामलिरुक्खत्ताए पचायाहिति,सा णं तस्थ अच्चियवं दियपूइय जाव लाउलोइयमहिए यावि|8॥६५॥ भविस्सह, से णं भंते ! तओहिंतो अणंतरं उपट्टित्ता सेसं जहा सालरुवखस्स जाच अंतं काहिति । एस णं | भंते ! उंबरलट्टिया उण्हाभिहया ३ कालमासे कालं किचा जाव कहिं उपयजिहिति !, गोयमा ! इहेव जंबु दीप अनुक्रम [६२४] ~1309~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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