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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [५००-५०१] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ॥ अथ चतुर्दशशतकम् ॥ प्रत सूत्रांक [५०० -५०१] गाथा व्याख्यातं विचित्रार्थं त्रयोदशं शतम्, अथ विचित्रार्थमेव क्रमायातं चतुर्दशमारभ्यते, तत्र च दशोदेशकास्तत्स-| अगाथा चेयम् चर १ उम्माद २ सरीरे ३ पोग्गल ४ अगणी ५ तहा किमाहारे ६। संसिह ७मलरे खलु ८ अणगारे ९ | केवली चेव १०॥१॥रायगिहे जाव एवं बयासी-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा चरम देवाचासं वीतिकंते परमं देवावासमसंपत्ते एत्य णं अंतरा कालं करेजा तस्स णं भंते ! कहिं गती कहिं उक्वाए पत्नत्ते?, गोयमा 1 जे से तत्थ परियस्सओ तल्लेसा देवावासा तहिं सस्स उववाए पन्नत्ते, से य तत्व गए विराहेजा कम्मलेस्सामेव पडिमडइ, से य तत्थ गए नो विराहेजा एयामेव लेस्सं उसंपजित्ताणं विहरति । अणगारेणं भंते ! भाबियप्पा परमं असुरकुमारावासं वीतिकंते परमअसुरकुमारा०एवं चेव एवं जाय थणियकमारावासं जोइसियावासं एवं चेमाणियावासं जाब विहरइ ॥ (सब५००) नेरइयाणं भंते ! कह सीहागती कह सीहे | गतिविसए पण्णते?, गोपमा से जहानामए के पुरिसे तरुणे बलवं जुगवं जाव निउणसिप्पोवगए आउद्वियं | पाहं पसारेबा पसारियं वा बाहं आउंटेजा विक्खिण्णं वा मुर्हि साहरेजा साहरियं वा मुर्हि विक्विरेना | उन्निमिसियं वा अछि निम्मिसेजा निम्मिसियं वा अच्छि उम्मिसेना, भवे एयारूवे, णो लिणढे समवेद दीप अनुक्रम [५९६-५९८] REmiratanmairiland अथ चतुर्दशं शतकं आरभ्यते अथ चतुर्दशमे शतके प्रथम-उद्देशक: आरब्ध: ~12644
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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