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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१२], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [५], मूलं [४४९-४५०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [४४९-४५०
व्याख्या-1 धारणा एस ण कतिवन्ना १, एवं चेव जाव अफासा पन्नत्ता ॥ अह भंते ! उहाणे कम्मे चले वीरिए परि-||४|| १२ शतके प्रज्ञप्तिः
४ सफारपरकमे एस णं कतिवन्ने ?तं चेव जाव अफासे पन्नले । सत्तमे णं भंते ! उवासंतरे कतिवन्ने ?/५ उद्देश: अभयदेवी
| पापस्थान या वृत्तिा एवं चेव जाव अफासे पन्नत्ते । सत्तमे णं भंते ! तणुवाए कतिवन्ने ?, जहा पाणाइवाए, नवरं अट्ठफासे पण्णसे,
वर्णादिः वि एवं जहा सत्समे तणुवाए तहा सत्तमे घणवाए घणोदधि पुढवी, छ? उवासंतरे अबन्ने, तणुवाए जाव छट्ठी ॥५७१॥
| पुढधी एयाहं अह फासाई, एवं जहा सत्तमाए पुढचीए वत्तवया भणिया तहा जाव पढमाए पुढवीए भाणियवं.तिवर्णादिः
जंबुडीवे २ सयंभुरमणे समुद्दे सोहम्मे कप्पे जाव ईसिपम्भारा पुढधी नेरतियावासा जाव चेमाणियावासा| | सू४४९पयाणि सवाणि अगुफासाणि । मेरइया णं भंते ! कतिवन्ना जाव कतिफासा पन्नत्ता?, गोयमा! वेउपियतेपाई
४५० पडुच पंचवन्ना पंचरसा दुग्गंधा अहफासा पण्णत्ता, कम्मगं पडुच्च पंचवन्ना पंचरसा दुगंधा चउफासा पण्णत्ता, जीवं पडच अवन्ना जाव अफासा पण्णत्ता, एवं जाच थणिय०, पुढविकाइयपुच्छा, गोयमा ! ओरालियतेयगाई पडुच पंचवन्ना जाव अट्ठफासा पण्णत्ता, कम्मगं पहुच जहा नेर, जीवं पडुच तहेव, एवं जाव* चरिदि०, नवरं वाउकाइया ओरा.बेउ० तेयगाई पडुछ पंचवन्ना जाव अट्टफासा पण्णत्ता, सेसं जहा||R५७१॥ नेरइयाणं, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा बाउकाइया, मणुस्साणं पुच्छा ओरालियवेउवियआहारग-12 तेयगाई पडुच्च पंचवन्ना जाव अट्टफासा पपणत्ता, कम्मगं जीवं च पडुच जहा नेर०, वाणमंतरजोइसियवेमा
दीप
अनुक्रम [५४२-५४३]
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