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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [११], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [११], मूलं [४३०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [४३०]]
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अंधातीओ अट्ट अंगमहियाओ अट्ट उम्महियाओ अट्ट पहावियाओ अट्ठ पसाहियाओ अट्ट चन्नगपेसीओ द अह चुन्नगपेसीभो अह कोठागारीओ अट्ठ वकारीओ अट्ठ उवस्थाणियाओ अट्ठ नाडइजाओ अट्ठ कोडं- विणीओ अट्ठ महाणसिणीओ अह भंडागारिणीओ अट्ठ अज्झाधारिणीओ अट्ठ पुष्पधरणीओ अट्ठ पाणि
घरणीओ अट्ट बलिकारीओ अट्ट सेजाकारीओ अट्ठ अभितरियाओ पडिहारीओ अट्ट बाहिरियाओ पडिहारीओ अट्ठ मालाकारीओ अट्ट पेसणकारीओ अन्नं वा सुबहुं हिरनं वा सुवन्नं था कंसं वा दसं वा विउलघणकणगजावसंतसारसावएजं अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउ पकामं भोजु पकामं
परिभाए । तए णं से महत्वले कुमारे एगमेगाए भजाए एगमेगं हिरनकोडिं दलपति एगमेगं सुबन्नकोडिं ददलयति एगमेगं मउर्ड मउडप्पवरं दलयति एवं तं चेव सर्व जाव एगमेगं पेसणकारिं दलयति अनं या *सुबहुं हिरनं वा जाव परिभाए, तए णं से महरले कुमारे उप्पि पासायवरगए जहा जमाली जाब विह
रति (सूत्रं ४३०)॥ . | 'पमक्खणगण्हाणगीयवाइयपसाहणटुंगतिलगकंकणअविहववहुउवणीय'ति प्रवक्षणक-अभ्यञ्जनं स्नानगी
तवादितानि प्रतीतानि प्रसाधनं-मण्डनं अष्टस्वङ्गेषु तिलकाः-पुण्ड्राणि अष्टाङ्गतिलकाः करणं च-रक्तदवरकरूपं 3 एतानि अविधववधूभिः-जीवत्पतिकनारीभिरुपनीतानि यस्य स तथा तं 'मंगलसुजंपिएहि यत्ति मङ्गलानि-दध्यक्ष
तादीनि गीतगानविशेषा वा तासु जल्पितानि च-आशीर्वचनानीति द्वन्द्वस्तैः करणभूतैः 'पाणिं गिण्हाविंसुत्ति सम्बन्धः,
दीप
अनुक्रम [५२२]
महाबलकुमार-कथा
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