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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [११], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१०], मूलं [४२१-४२३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४२१-४२३] व्याख्या- वाससयसहस्साउए दारए पयाए, तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पहीणा भवंति नो चेव णं ते देवाने प्रज्ञप्तिः अलोयंतं संपाउणति, तं चेव०, तेसि णं देवाणं किं गए बहुए अगए बहुए ?, गोयमा! नो गए पहुए अगए| १० उद्देशः अमयदेवीया वृत्तिः२४ बहुए गयाज से अगए अणंतगुणे अगयाउ से गए अणंतभागे, अलोएणं गोयमा! एमहालए पन्नत्ते॥(सूत्रं४२१) जीषप्रदे लोगस्स णं भंते ! एगंमि आगासपएसे जे एगिदियपएमा जाव पंचिंदियपएसा अणिदियपदेसा अन्नमन- शानामेका. १५२६॥ बद्धा अन्नमनपुट्ठा जाव अन्नमन समभरघडत्साए चिट्ठति, अस्थि णं भंते ! अनमनस्स किंचि आवाहं वा||४|| वगाहे वा. वावाहं वा उप्पायति छविच्छेदं वा करेंति?, णो तिणढे समझे, से केणटेणं भंते! एवं बुच्चई लोगस्स णं एगंमि| धाऽभावा आगासपएसे जे एगिदिवपएसा जाब चिट्ठति णस्थि णं भंते ! अन्नमन्नस्स किंचि आवाहं वा जाव करेंति 2, गोयमा से जहानामए नहिया सिया सिंगारागारचारुवेसा जाब कलिया रंगट्ठाणसि जणसयाउलंसि जणसयसहस्साउलंसि बत्तीसइविहस्स नहस्स अन्नयर नट्टविहिं उवदंसेज्जा, से नूर्ण गोयमा! ते पेच्छगा तं नहियं अणिमिसाए दिहीए सचओ समता समभिलोएंति, हता समभिलोएंति, ताओ ण गोयमा ! | दिवीओ तसि नहिषंसि सबओ समंता संनिपडियाओ , हंता सन्निपडियाओ, अस्थि णं गोयमा! ताओ || |दिट्ठीओ तीसे नट्टियाए किंचिवि आबाई चा वापाई वा उप्पाएंति छविच्छेदं वा करेंति , णो तिणद्वेदी समडे, अहवा सा नदिया तासि विट्ठीणं किंचि आपाहं वा वायाहं वा उपाएति छविच्छदं वा करेह ॥५२६॥ ठाणो तिणढे समढे, ताओ वा विडीओ अनमनाए दिठ्ठीए किंचि आवाहं वा वाचाहं वा उष्पापंति पवि-18 REC दीप अनुक्रम [५११-५१३] ~1057~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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