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________________ आगम (०४) “समवाय” - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [१०], ----- --------- मूलं [१०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४], अंग सूत्र - [०४] “समवाय” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: 1909540 प्रत सूत्रांक [१०] ९ केवलिमरणं वा मरिजा सव्वदुक्खप्पहीणाए १०, मंदरे णं पव्वए मूले दस जोयणसहस्साई विक्संभेणं प०, अरिहा 4 अरिहनेमी दस धणूई उद्धं उबसेणं होत्था, कण्हे णं वासुदेवे दस धणूई उड्डे उच्चत्तेणं होत्था, रामे णं बलदेवे दस धणूई उद्धं उच्चत्तेणं होत्था, दस नक्खत्ता नाणबुद्धिकरा ५० तं-मिगसिर अहा पुस्सो तिष्णि अ पुव्वा य मूलमस्सेसा। हत्यो चित्तो य तहा दस वुद्धिकराई नाणस्स ॥१॥ अकम्मभूमियाणं मणुआणं दसविहा रुक्खा उवभोगत्ताए उवस्थिया प० तं-मत्तगया य मिंगो तुडिअंगों दीवजोई चित्तंगी चित्तरसौं मणिअंगी गेहागारो अनिगिणों व ॥१॥ इमीसे णं रयप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं जहणेणं दस वाससहस्साई ठिई प०, इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्यंगइआण नेरइयाणं दस पलिओवमाई ठिई ५०, चउत्थीए पुढवीए दस निरयावाससयसहस्साइ प०, चउत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं उक्कोसेणं दस सागरोक्माई ठिई ५०, पंचमीए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरझ्याणं जहण्णेणं दस सागरोवमाई ठिई प०, असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं जद्दण्णेणं दस वाससहस्साई ठिई प०, असुरिंदवजाणं भोमिजाणं देवाणं अत्येगइयाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिई ५०, असुरकुमाराण देवाणं अत्थेगइयाणं दस पलिओवमाई ठिई प०, बायरवणस्सइकाइए णं उक्कोसेणं दस वाससहस्साई ठिई प०, वाणमतराणं देवाणं अत्येगइयाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिई प०, सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्यंगइयाणं देवाणं दस पलिओवमाई ठिई प०, बंगलोए कप्पे देवाणं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं ठिई प०, लांतए कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं जहण्णेणं दस सागरोक्माई ठिई ५०, जे देवा घोसं सुघोसं महाघोसं नंदिघोसं सुसरं मणोरमं रम्मं रम्मगं रमणिनं मंगलावत्तं बंभलोगवडिंसगं विमाणं देव मनस दीप अनुक्रम [१४-१८] REsamlelona H umurary.org ~37~
SR No.004104
Book TitleAagam 04 SAMAVAY Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages324
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size70 MB
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