________________
आगम
(०४)
“समवाय” - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], ------------------- मूलं [१५६ से १५९] + ९३ गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०४], अंग सूत्र - [०४] “समवाय” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
*
सूत्रांक
[१५६
*
१५९] गाथा: १-९३
य निम्ममे । चित्तउत्ते समाही य, आगमिस्सेण होखई ॥ ७४ ॥ संवरे अणियट्टी य, विजए विमलेति य । देवोववाए बरहा, अणतविजए इस ॥ ७५ ।। एए वुत्ता चउव्वीस भरहे वासम्मि केवली । आगमिस्सेण होक्खंति, धम्मतित्थस्स देसगा ॥७६॥ एएसिणं चउन्बीसाए तित्थकराणं पुवमविया चउब्बीस नामधेजा भविस्संति, तंजहा-सेणिय सुपास उदए पोटिल अणगार तह दढाऊ य । कत्तिय संखे य तहा नंद सुनंदे य सतए य॥ ७७॥ बोद्धव्वा देवई य सच्चइ तह वासुदेव बलदेवे । रोहिणि सुलसा चेव तत्तो खलु रेखई चेव ॥ ७८ ॥ ततो हवइ सयाली बोद्धले खलु तहा भयाली य । दीवायणे य कण्हे तत्तो खलु नारए चेव ॥ ७९ ॥ अंबड दारुमडे व साई बुद्धे य होइ बोद्धचे । भावी तित्थगराणं णामाई पुब्बभवियाई ॥८॥ एएसि णं चउन्धीसाए तित्थगराणं चउच्चीसं पियरो भविस्सति चउब्बीसं मायरो भविस्संति चउन्चीस पढमसीसा भविस्सति चउध्वीसं पढमसिस्सणीयो भविस्संति चउच्चीसं पढमभिक्खादायगा भविस्संति चउव्वीसं चेइयरुक्खा भविस्संति, जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए पारस चक्कवट्टिणो भविस्संति, तंजहा-भरहे य दोहदंते गूढदंते य सुद्धदंते य । सिरिउत्ते सिरिमूई सिरिसोमे य सत्तमे ॥८१।। पउमे य महापउमे विमलवाहणे (लेतह) विपुलवाहणे चेव । वरिटे घारसमे बुने आगमिसा भरहाहिवा ॥ ८२ ॥ एएसिणं बारसण्डं चक्कवट्टीणं बारस पियरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति, जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए नव बलदेववासुदेवपियरो भविस्सति, नववासुदेवमायरो भविस्संति, नव बलदेवमायरो भविस्संति, नव दसारमंडला भविस्संति, तंजहा-उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पदाणपुरिसा ओयंसी तेयसी एवं सो चैव वणी भाणियवो जाव नीलगपीतगवसणा दुवे दुवे रामकेसवा भायरो भविस्सति, तंजहा-नंदे य नंदमिते दीहवाहू तहा
*
दीप अनुक्रम [२५४-३८३]
Damoraryou
~311~