SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०४) “समवाय” - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्तिः ) समवाय [प्रकिर्णका:], - ------- मूलं [१४७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०४], अंग सूत्र - [०४] “समवाय” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: राष्टिवादः प्रत श्रीसमवा-| यांगे श्रीअभय वृचिः ॥१२९॥ सूत्रांक [१४७] CACANCE दीप परिमाणं जिणमणपञ्जवओहिनाणसम्मत्तसुयनाणिणो य वाई अणुत्तरगई य जत्तिया सिद्धा पाओवगआ य जे जहिं जत्तियाई भत्ताई छेअइत्ता अंतगडा मुणिवरुत्तमा तमरओपविष्पमुक्का सिद्धिपहमणुत्तरं च पत्ता, एए अन्ने य एवमाइया भावा मूलपढमाणु ओगे कहिआ आपविजंति पण्णविजंति परू. सेत्तं मूलपढमाणुओगे, से किं तं गंडियाणुओगे?, अणेगविहे पण्णत्ते, तंजहा-कुलगरगडियाओ तित्थगरगंडियाओ गणहरगंडियाओ चक्कहरगंडियाओ दसारगंडियाओ बलदेवगंडियाओ वासुदेवगंडियाओ हरिवंसगंडियाओ भदबाहुगंडियाओ तवोकम्मगंडियाओ चित्ततरगंडियाओ उस्सप्पिणीगंडियानो ओसप्पिणीगंडियाओ अमरनरतिरियनिरयगइगमणविविहपरियट्टणाणुओगे, एवमाझ्याओ गंडियाओ आपविजंति पण्णविजंति परूविजेति, सत्तं गंडियाणुओगे. से किं तं चलियाओ?, जणं आइलाणं चउण्हं पुन्वाणं चूलियाओ, सेसाई पुबाई अचूलियाई, सेत्तं चूलियाओ, दिद्विवायस्स णं परित्ता वायणा संखेआ अणुओगदारा संखेआओ पडिवत्तीओ संखेजाओ निजुत्तीओ संखेजा सिलोगा संखेजाओ संगहणीओ, से पं अंगठ्ठयाए पारसमे अंगे एगे सुयखंचे चउद्दस पुवाई संखेजा वत्थू संखेजा चूलवत्थू संखेजा पाहुडा संखेजा पाहुडपाहुडा संखेजाओ पाहुडियाओं संखजाओ पाहुडपाहुडियाओ संखेजाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं पन्नत्ता, संखेना अक्खरा अणंता गमा अणंता पजवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति पण्णविनंति परूविअंति दंसिर्जति निदंसिर्जति उवदंसिबंति, एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणया आपविजेति, सेत्तं दिविवाए, सेतं दुवालसंगे गणिपिडगे ॥१२॥ (सूत्र १४७) 'से किं तं दिविवाए'त्ति दृष्टयो-दर्शनानि वदनं वादो दृष्टीनां वादो दृष्टिवादः दृष्टीना वा पातो यत्रासौ दृष्टिपातः अनुक्रम [२२८-२३२] ॥१२९।। whesturary.com द्रष्टिवाद अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचयः, ~2624
SR No.004104
Book TitleAagam 04 SAMAVAY Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages324
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size70 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy