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________________ आगम (०४) “समवाय” - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [१], ---------- मूलं [१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०४], अंग सूत्र - [०४] “समवाय” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत श्रीसमवा यांग श्रीअभय वृत्तिः सूत्रांक [१] ॥७॥ दीप वाणं वाससहस्सेहिँ आहारो ॥१॥ त्ति, सन्ति-विद्यन्ते 'एगइया' एके केचन 'भवसिद्धिय'त्ति भवा-भाविनी || सिद्धिः-मुक्तिर्येषां ते भवसिद्धिकाः-भव्याः भवरगहणेणं'ति भवस्य-मनुष्यजन्मनो ग्रहणम्-उपादानं भवग्रहणं तेन सेत्स्यन्ति अष्टविधमहर्द्धिप्राप्त्या भोत्स्यन्ते केवलज्ञानेन तत्वं 'मोक्षन्ति' कर्मराशेः परिनिर्वास्यन्ति-कर्मकृतविकारविरहाच्छीतीभविष्यन्ति, किमुक्तं भवति ?-सर्वदुःखानामन्तं करिष्यन्तीति ॥ सामान्यनयाश्रयणादेकतया वस्तून्यभिधायाधुना विशेषनयाश्रयणाद्वित्वेनाह दो दंडा पन्नत्ता, –अट्ठादंडे चेव अणहादंडे चेक, दुवे रासी पण्णत्ता, तंजहा-जीवरासी चेव अजीवरासी चेव, दुविहे बन्धणे पन्नत्ते, तंजहा-रागवन्धणे चेव दोसपन्धणे चेव, पुवाफग्गुणीनक्खचे दुतारे पं०, उत्तराफग्गुणी नक्षत्ते दुतारे पं०, पुचाभदवया नक्खत्ते दुतारे पं०, उत्तरामद्दवया नक्षत्ते दुतारे पं०, इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाण नेरइयाणं दो पलिओवमाई ठिई पं० दुचाए पुढवीए अत्थेगइयाण नेरइयाणं दो सागरोवमाई ठिई ५० असुरकुमाराण देवाणं अत्यंगइयाणं दो पलिओवमाई ठिई ५० असुरकुमारिंदवजिवाणं भोमिजाणं देवाणं उक्कोसेणं देसूणाई दो पलिओवमाई ठिई ५० असंखिजवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिआणं अत्थेगइयाणं दो पलिओवमाई ठिई ५० असंखिजवासाउयसन्नि० माणुस्साणं अत्थेगइयाण देवाणं (च) दो पलिओक्माई ठिई पं० सोहम्मे कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं दो पलिओवमाई ठिई पं० ईसाणे कप्पे अत्गइयाणं देवाणं दो पलिओवमाई ठिई पं० सोहम्मे कप्पे अत्धेगझ्याणं देवाणं उकोसेणं दो सागरोवमाई ठिई पं० ईसाणे कप्पे देवाणं उक्को अनुक्रम [१] arelianchurary.orm एते सूत्रे 'दंड' आदि पदार्थस्य द्वित्वं उक्तं ~ 18~
SR No.004104
Book TitleAagam 04 SAMAVAY Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages324
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size70 MB
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