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________________ आगम (०२) “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [२], उद्देशक [-], मूलं [३२], नियुक्ति: [१६८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्तिः २ क्रिया स्थानाध्य. प्रत सूत्रांक [३२] नैमित्तिका सूत्रकृताओं २ श्रुतस्कन्धे शीलाकीयावृत्तिः ॥३२२॥ धमवृत्तिः दीप अनुक्रम [६६४] उहाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव घूराओ कप्पेति अन्नणवि कप्पावति कप्पतपि अन्नं समणुजाणइ इति से महया जाव भवइ ॥ से एगइओ केणइ आयाणेणं विरुद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराधालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उसालाओ वा गोणसालाओ वा घोडगसालाओ वा गद्दभसालाओ वा कंटकवोंदियाए पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेइ अन्नेणवि झामावेइ झामंतंपि अन्नं समणुजाणइ इति से महया जाच भवइ ॥ से एगइओ केणइ आयाणेणं विरुद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराधालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा कुंडलं वा मणिं वा मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ अन्नेणवि अवहरावइ अवहरंतंपि अन्नं समणुजाणइ इति से महया जाव भव ॥ से एगइओ केणइबि आदाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं समणाण वा माहणाण वा छत्सगं वा दंडगं वा भंडगं वा मत्सर्ग वा लर्हि वा भिसिगं वा चेलगं वा चिलिमिलिगं वा चम्मयं वा छेयणगं वा चम्मकोसियं वा सयमेव अवहरति जाव समणुजाणइ इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवह ॥ से एगइओ णो वितिगिंका तं०-गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणिकाएणं ओसहीओ झामेह जाव अन्नपि झामतं समणुजाणइ इति से महया जाय उवक्खाइत्ता भवति ॥ से एगइओ णो वितिगिंछइ, तं०-गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उहाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव घूराओ कप्पेद अन्नेणवि कप्पावे Recesereese ॥३२२॥ ~648~
SR No.004102
Book TitleAagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages860
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size176 MB
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