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________________ आगम “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः ) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [१], उद्देशक [-], मूलं [१०], नियुक्ति: [१५७] (०२) काध्य प्रत सूत्रांक [१०] सूत्रकृताङ्गे शास्त्रीकामेषु मूञ्छिता इत्येवं पूर्ववज्ज्ञेयं यावत्तदन्तरे कामभोगेषु विषण्णा ऐहिकामुष्मिकोभयकार्यभ्रष्टा नात्मत्रा(नखा)णाय नापि |१ पुण्डरी२ श्रुतस्क-18| परेषामिति । भवत्येवं द्वितीयः पुरुषजातः पञ्चमहाभूताभ्युपगमिको व्याख्यात इति ॥ साम्प्रतमीश्वरकारणिकमधिकृत्याहन्धे शीला-18 अहावरे तचे पुरिसजाए ईसरकारणिए इति आहिजइ, इह खलु पादीणं वा ६ संगतिया मणुस्सा भवं इश्वरकारदीयावृत्तिः ति अणुपुषेणं लोयं उबवन्ना, तं०-आरिया वेगे जाव तेसिंच णं महंते एगे राया भवइ जाव सेणावइपुत्ता, do |णिका ॥२८॥ तेर्सि च णं एगतीए सही भवइ, कामं तं समणा य माहणा य पहारिंसुगमणाए जाव जहा मए एस धम्मे सुअक्खाए सुपन्नत्ते भवह ॥ इह खलु धम्मा पुरिसादिया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूया पुरिसपज्जोतिता पुरिसअभिसमण्णागया पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति, से जहाणामए गंडे सिया सरीरे जाए सरीरे संबुद्धे सरीरे अभिसमण्णागए सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मा पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए अरई सिया सरीरे जाया सरीरे संवुडा सरीरे अभिसमण्णागया सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूप चिट्ठति । से जहाणामए चम्मिए सिया पुढविजाए पुढविसंवड़े पुढविअभिसमण्णागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठा एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए रुक्से सिया पुढविजाए पुढविसंबुद्धे पुढविअभिसमण्णागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाच पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए पुकखरिणी सिया पुढविजाया जाच पुढविमेव अभिभूय चिट्ठ दीप अनुक्रम [६४२] seeeeese मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[२], अंग सूत्र-[०२] "सुत्रकृत" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: ~572~
SR No.004102
Book TitleAagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages860
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size176 MB
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