________________
आगम
“सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [-], उद्देशक [-], मूलं -], नियुक्ति: [१४६]
(०२)
eceaesese
सूत्रकृता
१पौण्डरीकाध्य. पुण्डरीकनिक्षेपाः
प्रत
२श्रुतस्कन्धे शीलाकीयायां
वृत्ती ॥२६७॥
सूत्रांक
-
| एगभचिए य बद्धाउए य अभिमुहियनामगोए य । एते तिन्निवि देसा दब्वंमि य पोंडरीयस्स ॥१४६ ॥
तेरिच्छिया मणुस्सा देवगणा चेव होंति जे पवरा । ते होंति पुंडरीया सेसा पुण कंडरीया उ ॥ १४७ ॥ | जलयर धलयर खयरा जे पवरा चेव होंति कंता य । जे अ सभावेऽणुमया ते होति पुंडरीया उ॥ १४८॥
अरिहंत चकबद्दी चारण विजाहरा दसारा य । जे अन्ने इडिमंता ते होंति पोंडरीया उ॥॥१४९ ॥ भवणवइवाणमंतरजोतिसवेमाणियाण देवाणं । जे तेसिं पवरा खलु ते होंति पुंडरीया उ ॥१५॥ | कंसाणं दूसाणं मणिमोत्तियसिलपवालमादीणं । जे अ अचित्ता पवरा ते होंति पोंडरीया उ॥१५१ ।। |जाई खेत्ताई खलु सुहाणुभावाई होति लोगंमि । देवकुरुमादियाई ताई खेत्ताई पवराई ॥१५२॥ |जीवा भवद्वितीए कायठितीए य होति जे पवरा । ते होंति पोडरीया अवसेसा कंडरीया उ ।। १५३ ॥ गणणाए रजू खलु संठाणं चेव होंति चउरंसं । एयाइं पोंडरीगाई होंति सेसाई इयराइं ॥ १५४ ॥ ओदइए उपसमिए खइए य तहा खओवसमिए अ । परिणामसन्निवाए जे पवरा तेवि ते चेव ॥ १५ ॥ अहवावि नाणदंसणचरित्तविणए तहेव अज्झप्पे । जे पवरा होति मुणी ते पवरा पुंडरीया उ ॥ १५६ ॥ एत्थं पुण अहिगारो वणस्सतिकायपुंडरीएणं । भावंमि अ समणेणं अज्झयणे पुंडरीमि ॥१५७ ॥
नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकालभावात्मको महति पनिधो निक्षेपो भवति, तत्र नामस्थापने सुज्ञाने, द्रव्यमहदागमतो नोआगम___ अचित्त मीसगेमुं दव्येसु जे व होति पवरा उ । ते होति पौडरीया, सैसा पुण कंडरीया छ ॥ १॥ इति प्रत्यन्तरेऽधिका गाथा ॥
दीप अनुक्रम
esesed
| ॥२६७||
wwlanniorary.org
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[२], अंग सूत्र-[०२] "सुत्रकृत" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: 'महत् एवं अध्ययन' शब्दयो: निक्षेपा:
~538~