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________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [३], उद्देशक [१], मूलं [११६], नियुक्ति: [३१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत सूत्रांक [११६] दीप अनुक्रम वा सइ लादे विहाराए संथ० जण नो विहारवडियाए०, केवली चूया आयाणमेयं, तेणं बाला तं व जाव गमणाए तओ सं० गा० दू०॥ (सू० ११६) कण्य, नवरम् 'अराजानि' यत्र राजा मृतः 'युवराजानि' यत्र नाद्यापि राज्याभिषेको भवतीति ॥ किच से भिक्खू वा गा० दूहामाणे अंतरा से विहं सिया, से जं पुण विहं जाणिज्जा एगाहेण वा दुआहेण वा तिआहेण वा चउआहेण वा पंचाहेण वा पाउणिज वा नो पाणिज वा तहपगार विहं अणेगाहगमणिज सइ लाढे जाव गमणाए, केवली बूया आयाणमेयं, अंतरा से बासे सिया पाणेसु वा पणएसु वा बीएसु वा हरि० उद्० मट्टियाए वा अविद्वत्थाए, अह भिक्खू जं तह० अणेगाह० जाव नो पब०, तओ सं० गा० दू०॥ (सू० ११७) स भिक्षुामान्तरं गच्छन् यत्पुनरेवं जानीयात् 'अन्तरा' ग्रामान्तराले मम गच्छतः 'विहति अनेकाहगमनीयः पन्थाः 'स्यात्' भवेत् , तमेवंभूतमध्वानं ज्ञात्वा सत्यन्यस्मिन् विहारस्थाने न तत्र गमनाय मतिं विदध्यादिति, शेषं सुगम् ।। साम्प्रतं नौगमनविधिमधिकृत्याह से भि० गामा० दूइजिज्जा. अंतरा से नाबासंतारिमे उदए सिया, से जं पुण नावं जाणिजा असंजए अमिक्खुपडियाए किणित वा पामिचेज वा नावाए वा नावं परिणाम कट्ट थलाओ या नावं जलंसि ओगाहिया जलाओ या नावं थलंसि उक्तसिजा पुर्ण वा नावं उस्सिचिञा सन्नं वा नावं उप्पीलाविजा तहप्पगारं नावं उड़गामिणि वा अहे. [४५०] ~760~#
SR No.004101
Book TitleAagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages871
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size145 MB
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