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________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [२], उद्देशक [३], मूलं [११], नियुक्ति: [३०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत ९१॥ दीप अनुक्रम [४२५]] से मिक्खू वा० से जं. ससागारिय सागणियं सउदयं नो पन्नस्स निक्खमणपवेसाए जावऽणुषिताए तहपगारे उबस्सए नो ठा०॥ (सू० ९१) स भिक्षुर्य पुनरेवभूतं प्रतिश्रयं जानीयात् , तद्यथा-ससागारिक साग्निक सोदक, तत्र स्वाध्यायादिकृते स्थानादि| न विधेयमिति । तथा से मिक्सू वा० से ज० गाहावइकुलस्स मझमजोणं गंतु पंथए पडिबद्धं वा नो पन्नस्स जाव चिंताए तह ७० नो ठा०॥ (सू०९२) यस्योपाश्रयस्य गृहस्थगृहमध्येन पन्धास्तत्र बलपायसम्भवात्तत्र न स्थातव्यमिति ॥ तथा से भिक्खू वा० से जं०, बह खलु गाहावई वा० कम्मकरीओ वा अन्नमन्नं अकोसंति या जाव उर्वति वा नो पन्नस्स०, सेवं नचा ताप्पगारे १० नो ठा० ॥ (सू० ९३) से मिक्सू वा० से जं पुण० इह खलु गाहावई या सम्मअरीओ वा अन्नमन्नस्स गायं तिलेण वा नव०प० वसाए वा अभंगेति वा मक्वेति वा नो पण्णास आव तहप्प० उच० नो ठा० (सू० ९४ ) से मिक्स् वा० से जं पुण-इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ अन्नमन्त्रस्स गायं सिणाणेण का क० लु० चु०प० आपसंति वा पसंति वा उव्वलंति वा उबहिँति वा नो पन्नस्स० (सू० ९५) से मिक्खू० से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा, इह खलुगाहावती वा जाव कम्मकरी वा अण्णमण्णस्स गाय सीओदग० उसिणो पुच्छो० पहोयंति सिंचंति सिणावंति वा नो पन्नस्स जाव नो ठाणः ॥ (सू०९६) **%%*45523 wwwandltimaryam ~746~#
SR No.004101
Book TitleAagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages871
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size145 MB
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