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________________ ॥३३॥ यह पुराणनिर्माणाधिकरणम् सुमन्तु स्तस्य शिष्योऽभूद् वेदव्यासस्य धीमतः ।।९ रोमहर्षणनामानं महाबुद्धिं महामुनिः । सूतं जग्राह शिष्यं स इतिहासपुराणयोः॥१० भगवान् ब्रह्मा की प्रेरणा से वेदविभाग के उपक्रम में लगे व्यास ने चारों वेदों के चार शिष्य तथा इतिहास पुराण के एक शिष्य को लिया जो क्रमश: १. पैल २. वैशम्पायन ३. जैमिनि ४. सुमन्तु तथा ५. लोमहर्षण हैं। शाखा भेद प्रसङ्ग की समाप्ति पर भी विष्णुपुराण का कथन है इति शाखा: समाख्याताः शाखाभेदा स्तथैव च। करिश्चैव शाखानां भेदहेतु स्तथोदितः ॥३.६.३१ एतत्ते कथितं सर्वं यत् पष्टोऽहमिह त्वया। मैत्रेय वेदसम्बद्धः किमन्यत् कथयामि ते॥३३ मैंने यह विषय-शाखाएँ, शाखा भेद, शाखाओं के कर्ता तथा भेद हेतु-बता दिया है॥३१॥ तुमने वेद के सम्बन्ध में जो कुछ पूछा है वह सब मैंने बता दिया है, अब बताओ क्या पूछते हो स्पष्ट है कि यह 'वेदविषय' ही पूछा और कहा गया था। इससे दूसरा विषय भी स्पष्ट हो जाता है कि जैसी उत्तरोत्तर शिष्य संख्या रही तदनुसार ही शाखा भेद बनें। यही पुराण के साथ भी है। व्यास के लोमहर्षण, लोमहर्षण के तीन शिष्य शाखाकार, इन चारों का शिष्य उग्रश्रवा, इस उग्रश्रृंवा द्वारा पुराण तथा अन्य ऋषियों द्वारा उपपुराण के अनेक भेद बने। विष्णुपुराण के तथा भागवत के सुप्रसिद्ध टीकाकार श्री श्रीधर स्वामी की टीका भी पुराणावतरण के सम्बन्ध में त्रुटिपूर्ण है। ओझाजी ने उन त्रुटियों का भी सङ्केत किया है। इस प्रकार प्रारम्भ से अन्त तक पुराणावतरण का शास्त्रीय पक्ष ओझाजी ने इस सुन्दरता से प्रकट किया है कि इसका सही ढंग से स्वाध्याय करने से इस दिशा में गति बहुत अच्छे प्रकार से हो जाती है तथा पूरा पुराणवाङ्मय स्पष्ट हो जाता है। _ 'पुराणनिर्माणाधिकरणम्' नामक इस ग्रन्थ के हिन्दी अनुवाद में पूज्य गुरुवर्य प्रोफेसर (डॉ.) गणेशीलाल सुथार, पूर्व निदेशक, पण्डित मधुसूदन ओझा शोधप्रकोष्ठ, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर, से सहायता प्राप्त हुई है, एतदर्थ उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हैं। पुराणशास्त्रविन्मूर्धन्य पण्डित अनन्त शर्मा ने हिन्दी अनुवाद सहित इस ग्रन्थ का सम्पादन सम्पन्न किया है, अतः उनके प्रति हृदय से कृतज्ञ हूँ। पण्डित मधुसूदन ओझा शोधप्रकोष्ठ की निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) प्रभावती चौधरी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने मुझे इस अनुवाद-कार्य के लिये निरन्तर प्रेरित करते हुए इस ग्रन्थ के प्रकाशन के लिये प्राथमिकता प्रदान की है। प्रोफेसर सत्यप्रकाश दुबे, संस्कृतविभागाध्यक्ष तथा प्रोफेसर (डॉ.) सरोज कौशल के प्रति हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने समय-समय पर मुझे प्रोत्साहित दि । मेरे अभिन्न मित्रवर्य डॉ. प्रवीण पण्ड्या (सांचौर) तथा डॉ. हरिसिंह राजपुरोहित ने सत्परामर्श प्रदान कर सन्मित्र के कर्त्तव्य का निर्वाह किया अतः उनके प्रति हृदय से कृतज्ञता का ज्ञापन मेरा परम कर्तव्य है। ०९-१०-२०१३ डॉ. छैलसिंह राठौड़ संस्कृतविभाग जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004100
Book TitlePuran Nirmanadhikaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Oza, Chailsinh Rathod
PublisherJay Narayan Vyas Vishwavidyalay
Publication Year2013
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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