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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
संहिताओं के साथ अध्येताओं के विषय में भी संख्या को लेकर प्रश्न है। शिष्य छः हो सकते हैं अथवा सात हो सकते हैं चार किसी भी स्थिति में नहीं । उग्रश्रवा के साथ कश्यप, सावर्णि, राम शिष्य अकृतव्रण, ये तीन हैं, त्रय्यारुणि, वैशम्पायन तथा
ACT क्या हुआ ? इन विसङ्गतियों को देखकर श्री स्वामी ने चतस्रः के स्थान पर चत्वारः पाठ किया तथापि समाधान नहीं निकाला बंशीधरी में भी 'कश्यपोऽहमुग्रश्रवाः सावर्णि रकृतव्रणश्चतुर्थ एते चत्वारो वय मित्यर्थः ' के भाग से स्वामी के वचनों का समर्थन तो ज्ञात हो रहा है किन्तु कण्ठतः ' चत्वारः' पढ़ा गया है यह ज्ञात नहीं हो पा रहा है। कारण यह है कि ये अवान्तर संहिता की, एक ही संहिता की अङ्गभूत अनेक संहिताओं की संख्या के साथ-साथ अनेक प्रकार चार संहिताओं की, पाँच संहिताओं की, छः संहिताओं की चर्चा भी करते हैं । इस प्रकार की चर्चा से यह तो निश्चित है कि इस सन्दर्भ को ये भी यथावत् नहीं समझ पाये हैं।
श्री श्रीधर स्वामी का व्यास द्वारा छः संहिताओं की निर्मिति कर रोमहर्षण को पढ़ाने जैसी बात, फिर रोमहर्षण से उनमें त्रय्यारुणि आदि का एक एक संहिता पढ़ना, तथा इनसे—अर्थात् गुरुशिष्यों से सातों संहिताओं का उग्रश्रवा द्वारा ग्रहण करना, बताना सर्वथा निर्मूल है। वेदशाखाओं में जो विधि है वही यहाँ है। ऋत्विक् कर्मकी दृष्टि से व्यास वेद के लिए चार शिष्य लेते हैं पुराण के लिए एक शिष्य लोमहर्षण को लेते हैं । इस प्रकार पाँचों अपने स्वीकृत विषय के प्राधान्य के साथ सभी विषयों को लेते हैं, सभी सभी में निष्णात होते हैं किन्तु शिष्य अधिकार विषय में ही बनाते हैं । उन शिष्यों को भी अपने अधिकार विषय में ही शिष्य दीक्षा दी जा सकेगी। किसी को विषयान्तर पढ़ना है तो स्वविषय के ज्ञान के पश्चात् अन्य गुरु से दीक्षा पूर्वक वह विषय पढ़ेगा । ज्ञान को वह उपयोग के लिए प्राप्त करेगा शास्त्रानुसन्धान हेतु किन्तु उत्तरोत्तर शिष्य विस्तार का अधिकार उसे नहीं है। इस दृष्टि से व्यास एक ही संहिता रचते हैं । व्यास शिष्य रोमहर्षण की भी एक ही संहिता है वहीं छः शिष्यों को मिलती है, वे अपनी मति के अनुसार उसे लेते हैं तथापि संहिताकार तीन ही होते हैं । पुराण का जनसमुदाय में कथा - माध्यम से शास्त्र ज्ञानवर्धन तथा जीवन में पुरुषार्थ साधना में सामर्थ्य प्राप्त करने का उद्देश्य है । अतः वेद की रक्षा के लिए अनिवार्य दीक्षा जैसी आवश्यकता पुराण के लिए अपेक्षित नहीं है। फलतः जो भी रोमहर्षण को भगवान् व्यास से प्राप्त हुआ उसे शिष्यों में भली भाँति सङ्क्रान्त किया, उन तीन शिष्यों की प्रतिभा का फल मिलना ही था, उसे साथ लेकर पुराण विद्या के लिए अपेक्षित ज्ञान के लिए पूर्णतया उपयुक्त इन चार संहिताओं से
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