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________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् मूल में तो व्यास की पुराण संहिता ही आती है जो सभी पुराणों की मूल चारों संहिताओं की मूल है। इन सब पुराणों में भी भिन्नता के अनेक कारण हैं, कथा प्रभाव की भिन्नता, काल की भिन्नता, उद्देश्य की भिन्नता, वक्ता श्रोता मुनियों की भिन्नता तथापि इनमें जो एकसूत्रता के भाव दृष्टि में आते हैं उनका कारण है लोमहर्षण-पुत्र उग्रश्रवा जो इन सबके लिपिकर्ता हैं तथा अनेक बार इन पुराणों को शौनक आदि ऋषियों के गुरुकुलों में सुना चुके हैं। व्यास प्रणीत न होने पर भी इनकी व्यास के नाम से प्रामाणिकता का आधार भी यही है कि लोमहर्षण तथा इनके पुत्र उग्रश्रवा के द्वारा ही व्यास के मूल विचार प्रसारित हुए हैं, उग्रश्रवा अपने पिता का शिष्य तो है ही व्यास का भी शिष्य है। भले ही पुराणों में कहीं ऐसा स्पष्ट उल्लेख न हो किन्तु शान्तिपर्व के एक विशिष्ट प्रसंग ‘नारायणीय आख्यान' की समाप्ति पर सौति उग्रश्रवा ने शौनकादि को कहा नारायणीयमाख्यानमेतत्ते कथितं मया। पृष्टेन शौनकाद्येह नैमिषारण्यवासिसु॥ ३४६/१६ नारदेन पुरा राजन् गुरवे मे निवेदितम्। · ऋषीणां पाण्डवानां च शृण्वतोः कृष्णभीष्मयोः॥ १७ · शौनक ! नैमिषारण्यवासी ऋषियों के बीच आज आपके पूछने पर मैंने यह 'नारायणीय आख्यान' कहा है जो पहले देवर्षि नारद ने मेरे गुरु व्यास को ऋषियों, पाण्डवों और कृष्ण एवं भीष्म की उपस्थिति में कहा था। इस प्रकार इन महापुराणों का प्रामाण्य व्यास-मूलक है। .. ___ भगवान् व्यास की संहिता के आधार के बिना जिन ऋषि-मुनियों ने अपने तपोबल से कथा को जान लिया है, अतः उन-उन मुनियों के स्वतः प्रामाण्य से उन पुराणों की प्रामाणिकता है। जैसे दो नारद पुराण हैं उनमें वेदव्यास के प्रामाण्य से प्रामाण्य वाले पुराण की गणना १८ महापुराणों में है। जिसका प्रामाण्य नारद के प्रामाण्य पर ही है वह उपपुराण है। यह महापुराण उपपुराण की विभाजक रेखा है। इस प्रकार की मान्यता का आधार भी पुराण ही हैं। कूर्मपुराण में १८ महापुराणों की गणना की पूर्ति पर कहा गया है अन्यान्युपपुराणानि मुनिभिः कथितानि तु। अष्टादशपुराणानि श्रुत्वा सङ्क्षपतो द्विजाः॥ पूर्वभाग १.१६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004100
Book TitlePuran Nirmanadhikaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Oza, Chailsinh Rathod
PublisherJay Narayan Vyas Vishwavidyalay
Publication Year2013
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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