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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
कषाय के निमित्त राग-द्वेष हैं, अर्थात् राग-द्वेष से मुक्ति कषायमुक्ति है और कषायमुक्ति ही तनावमुक्ति है, यही मोक्ष है।
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उपाध्याय यशोविजयजी कहते हैं- "यदि ममता जाग्रत हो, अन्दर विषयों के प्रति राग विद्यमान हो, तो विषयों का त्याग करने से भी क्या होगा ? मात्र केंचुली का त्याग करने से सर्प विषरहित नहीं होता ' है ।" 94 कहने का तात्पर्य यही है कि व्यक्ति में राग या ममता का जहर फैला हुआ है। राग निर्मल हो जाए, तो विषय भोग का त्याग सहज हो जाता है और व्यक्ति तनावमुक्ति का अनुभव करता है। तनावमुक्ति के लिए राग-द्वेष को छोड़ना ही होगा। जिस प्रकार एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती, उसी प्रकार जहाँ ममत्व है, वहाँ समत्व नहीं रह सकता, अर्थात् जहाँ राग है, वहाँ मुक्ति सम्भव नहीं है। ज्ञानार्णव में कहा गया है- जिस पक्षी के पंख कट गए हैं, वह जिस प्रकार उपद्रव करने में असमर्थ हो जाता है, उसी प्रकार राग-द्वेषरूपी पंखों के कट जाने पर, उनके नष्ट हो जाने पर मनरूपी पक्षी भी उपद्रव करने अथवा बाह्य- पदार्थों में इष्ट-अनिष्ट - बुद्धि करके उनकी प्राप्ति व परिहार के लिए पापाचरण करने में असमर्थ हो जाता है । 25
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ममत्वत्यागाधिकार, अध्यात्मसार, उ यशोविजयजी ज्ञानार्णव, रागादिनिवारणम्, आ. शुभचन्द्र
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