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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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संज्वलनकिल्पाश्चैकशः क्रोधमानमाया लोभा शस्यख्यरतिशोक भय जुगुप्सास्त्रीपुनपुसकवेदाः ।।10।।
यहाँ यह कहा गया है कि कषाय का सम्बन्ध मुख्यतः मोहनीय कर्म से है। इसके दोनों भेद अर्थात् दर्शनमोह और चारित्रमोह कषाय से सम्बन्धित हैं। दर्शनमोह का सम्बन्ध अनन्तानुबंधी कषाय-चतुष्क से है और चारित्र मोहनीय सम्बन्ध अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानीय, प्रत्याख्यानीय और संज्वलन कषाय-चतुष्क से है।
"चारित्रमोहनीय के प्रमुख दो भेद हैं- कषायमोहनीय और नोकषाय- मोहनीय।"1 कषाय मोहनीय- अन्तर्गत क्रोध, मान, माया और लोभ आते हैं और हास्य, शोक, रति-अरति, भय, जुगुप्सा तथा स्त्री-पुरुष और नपुंसक की कामवासना नोकषाय मोहनीय है। ये कषायों के कारण या कार्य होते हैं। कषायों की तीव्रता व मन्दता के आधार पर ही उन्हें चार भागों में विभाजित किया गया है - (1) अनन्तानुबन्धी (2) प्रत्याख्यानीय (3) प्रत्याख्यानीय (4) संज्वलन।
.. चार कषायों को पुनः चार-चार अवस्थाओं में वर्गीकृत किया गया है। इस प्रकार कषाय के सोलह भेद बताए गए हैं। तत्त्वार्थसूत्र टीका में इसे इस प्रकार कहा गया है -"क्रोध, मान, माया और लोभये कषाय के मुख्य चार भेद हैं। तीव्रता के तरतमभाव की दृष्टि से प्रत्येक के चार-चार प्रकार हैं।
अनन्तानुबन्धी - क्रोध, मान, माया और लोभ हैं। अप्रत्याख्यानीय - क्रोध, मान, माया और लोभ। इसी प्रकार, प्रत्याख्यानीय एवं संज्वलन के भी चार-चार भेद करने पर कषायमोहनीय के सोलह भेद होते हैं। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद व नपुंसकवेद- ये नोकषाय-मोहनीय के नौ भेद हैं। प. फूलचंदजी शास्त्री की टीका में इन्हें अकषायवेदनीय और कषायवेदनीय कहा गया है। 83 हास्य आदि नौ भेद अकषायवेदनीय के हैं एवं कषायवेदनीय के सोलह भेद हैं।
तत्त्वार्थसूत्र टीका, उपाध्याय श्री केवलमुनि, पृ. 369 तत्वार्थसूत्र टीका - पं. सुखलाल संघवी पृ. 198 सर्वार्थसिद्धि, अध्याय – 8. पृ. 301
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