________________
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
309
तीसरा चरण - लेश्या-ध्यान - चित्त को आनन्द-केन्द्र पर केन्द्रित कर चमकते हुए हरे रंग का ध्यान करना है। हरे रंग का श्वास लेना है -प्रत्येक श्वास के साथ हरे रंग के परमाणु भीतर जा रहे हैं - ऐसा अनुभव करना है। 2-3 मिनट बाद कल्पना करना है कि आनन्द-केन्द्र से निकलकर हरे रंग के परमाणु शरीर में चारों ओर फैल रहे हैं तथा पूरा आभामण्डल हरे रंग के परमाणुओं से भर रहा है। 2-3 मिनट पश्चात् भावना के द्वारा यह अनुभव करना है कि भावधारा निर्मल हो रही है।
इसी प्रकार, विशुद्धि-केन्द्र पर नीले रंग, दर्शन-केन्द्र पर अरुण रंग, ज्ञान केन्द्र या चाक्षुष-केन्द्र पर पीले रंग और ज्योति-केन्द्र पर श्वेत रंग का ध्यान किया जाता है। इन केन्द्रों पर ध्यान करने के साथ जो भावना की जाती है, वह इस प्रकार है -
आनन्द विशुद्धि
नीला
केन्द्र रंग भावना/अनुभव
हरा | भावधारा की निर्मलता
| वासनाओं का अनुशासन दर्शन अरुण अन्तर्दृष्टि का जागरण-आनन्द का जागरण ज्ञान (चाक्षुष) | पीला | ज्ञानतंतु की सक्रियता (जाग्रति) ज्योति श्वेत | | परम शान्ति (क्रोध, आवेग, उत्तेजनाओं की . .
शान्ति।)
- लेश्याओं का नामकरण रंगों के आधार पर ही किया गया है और लेश्या का जैसा नाम है, वैसा ही ध्यान करते हुए अंतिम लेश्या तक अर्थात् लेश्या के अंतिम. रंग तक पहुंचना है। लेश्या के नाम एवं उनके रंग निम्न हैं23 - 1. · कृष्ण-लेश्या - काला रंग 2. नील-लेश्या - नीला रंग 3... कापोत-लेश्या – कापोत (बैंगनी) रंग
623 '. उत्तराध्ययनसूत्र, मधुकर मुनि – 34/4-9
र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org