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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 305 शांता जैन अपनी पुस्तक लेश्या और मनोविज्ञान में लिखती हैं- बिना समायोजन के शारीरिक, मानसिक और भावात्मक व्यक्तित्व के विघटन की संभावनाएं बनी रहती हैं। ऐसी स्थिति में तनाव मिटाने के लिए किया गया प्रयास भी सफल नहीं हो पाता। उपर्युक्त स्थिति को समाप्त करने के लिए व्यक्ति को अशुभ से शुभ लेश्याओं की ओर प्रस्थान करना होगा। जब शुभ लेश्याएँ सक्रिय होती हैं, तब व्यक्ति का स्वभाव, उसका व्यवहार विनम्र हो जाता है और जैनदर्शन के अनुसार, व्यक्ति के आत्म-परिणामों में विशुद्धता आती है। सांसारिक-तृष्णाओं से मुक्त होकर व्यक्ति आत्मदर्शन की यात्रा पर चल पड़ता है और अंत में पूर्णतः तनावमुक्त मोक्ष-अवस्था को प्राप्त करता मनोविज्ञान की भाषा में शुभ लेश्या वाला व्यक्ति तनावमुक्ति की दिशा में अग्रसर होता है। उसमें निम्न परिवर्तन घटित होते हैं - 1. आंतरिक द्वन्द्वों से मुक्त - अशुभ लेश्या में व्यक्ति बार-बार आंतरिक द्वन्द्व का अनुभव करता है। द्वन्द्व की स्थिति में व्यक्ति समय पर सही निर्णय नहीं ले पाता, जिसके परिणामस्वरूप भी तनाव उत्पन्न हो जाते हैं। द्वन्द्व की तीव्रता व्यक्ति की शक्ति, समय और मानसिकसंतुलन को नष्ट कर देती है। द्वन्द्व-निराकरण हेतु शुभ लेश्याओं का होना जरूरी है। जब तेजस-लेश्या जागती है, तब निर्द्वन्द्वता, आत्मनियंत्रण की शक्ति और तेजस्विता प्रकट होती है।17 द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं, उचित समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है। 2. समस्याओं का समाधान - जीवन में समस्याएँ आती रहती हैं। ये समस्याएँ ही सम्यक जीवन शैली की कसौटी है और इन कसौटियों में सफल होने के लिए शुभ लेश्या का होना आवश्यक है। शुभ लेश्या वाला व्यक्ति किसी भी समस्या का समाधान सोच-समझकर करता है। उसकी बुद्धिमत्ता से ही समस्याओं का सही समाधान होता है। 3. विषम परिस्थितियों में समायोजन - तनाव का एक कारण यह भी है कि व्यक्ति विषम परिस्थितियों में समायोजन नहीं रख पाता। उसमें जीवन की परिस्थितियों को यथार्थ रूप में ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती है। शुभ लेश्या से व्यक्ति जीवन-यात्रा की परिस्थितियों को 616 लेश्या और मनोविज्ञान, मुमुक्षु शांता जैन, पृ. 148 617 लेश्या और मनोविज्ञान - मुमुक्षु शांता जैन, पृ. 149 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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