________________
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
299
रहना और विकल्प करना- ये दोनों एक साथ नहीं चल सकते हैं। यदि ध्यान के माध्यम से विकल्प समाप्त होते हैं, तो यही समझा जाएगा कि उससे तनाव भी समाप्त होते हैं, क्योंकि तनावों का जन्मस्थल विकल्प ही है। इस प्रकार, हम यह कह सकते हैं कि तनावमुक्ति के लिए विपश्यना या प्रेक्षाध्यान की साधना आवश्यक है। धर्म और तनावमुक्ति -
आज मनुष्य अशांत एवं तनावपूर्ण स्थिति में है। वैज्ञानिकतकनीक से प्राप्त भौतिक सुख-सुविधा एवं आर्थिक समृद्धि भी मनुष्य को तनावमुक्त नहीं कर पाई है, मनुष्य की माँगों को संतुष्ट नहीं कर पाई है। आज के इस आतंकित और अशांत युग में मनुष्य कहाँ जाए, जहाँ उसे सुख शांति मिल सके। इस तनावपूर्ण स्थिति में तनावमुक्ति की खोज करता मानव अनेकानेक रास्ते अपनाता है। उन्हीं रास्तों में सबसे प्रचलित रास्ता धर्म का है, किन्तु आज तो धर्म के नाम पर भी मनुष्य एक-दूसरे से कटता जा रहा है। आज धर्म-सम्प्रदाय मानव-मानव के बीच द्वेष एवं घृणा के बीज बो रहे हैं। धर्मतत्त्व को प्रत्येक प्राणी अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार पृथक-पृथक् रूप में ग्रहण करता है और वह अपने पक्ष को सही मानकर दूसरे की अवहेलना करता है। वह धर्म, जाति और वर्ण के नाम पर अपने को दूसरे से भिन्न समझता है और दूसरे से भयभीत रहता है, इस प्रकार स्वयं को आतंकित अनुभव करता है एवं दूसरों को आशंकित बना देता है। आतंकित होना और आशंकित बना देना - दोनों ही तनाव के कारण हैं। आतंकित और आशंकित-दोनों ही अवस्थाओं में भय है और जहाँ भय है, वहाँ तनाव है ही। जो धर्म अहिंसा का मार्ग प्रशस्त करता है, उसी धर्म की आड़ में आज पूरे विश्व में हिंसा, कलह और अशांति का परिवेश बना हुआ है।
- अब प्रश्न उठता है कि फिर व्यक्ति तनावमुक्ति के लिए कहाँ जाए? वस्तुतः, तनावमुक्ति के लिए धर्म को अपने यथार्थ स्वरूप में अपनाना होगा। आज आवश्यकता है, धर्म के सही स्वरूप को समझने की।
605 अनसासणं पढो पाणी। - सत्रकृतांग -1/5/11
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org