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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
तैत्तिरीयोपनिषद में कहा गया है- 'वह परम सत्ता मूर्त-अमूर्त, वाच्य-अवाच्य, विज्ञान (चेतन)-अविज्ञान (जड़), सत्-असत् रूप है। . प्रत्येक वस्तु में विरोधी गुण होते हैं। आज के युग में देखा जाए, तो विश्व के तनावयुक्त होने का एक कारण विरोधाभास ही है। एक ही पदार्थ में नाना प्रकार की विरोधी धारणाएँ होती हैं और वे विरोधी धारणाएँ ही द्वन्द्व की स्थिति को उत्पन्न करती हैं। सत्य के एक पक्ष को देखने से व्यक्ति उसके प्रतिपक्ष को विरोध कर तनाव उत्पन्न करता है। विवाद विरोध से ही उत्पन्न होता है और जहाँ विवाद है, वहाँ अशांति व तनावयुक्त माहौल होता है। कोई भी व्यक्ति एक पक्ष को स्वीकार करता है, तो उसके प्रतिपक्ष का केवल अस्वीकार ही नहीं करता, अपितु उसका विरोध कर विवाद करने को तैयार हो जाता है। ऐसी स्थिति में अनेकांतवाद परस्पर विरोधी अवधारणाओं के मध्य समन्वय स्थापित करता है। अनेकान्त विरोधी के अस्तित्व को स्वीकृत करने के साथ-साथ प्रतिपक्ष को भी स्वीकार करता है। अगर जीवन में सुख-शांति चाहिए, तो यह जरूरी है कि हमें पक्ष और प्रतिपक्ष-दोनों को हमेशा स्वीकार करना होगा, क्योंकि प्रत्येक पदार्थ में विरोधी गुण विद्यमान रहते हैं, जैसे- हमारे शरीर में पिनियल और पिच्यूटरी - ये दोनों ग्रन्थियाँ ज्ञान के विकास की ग्रन्थियाँ हैं, तो गोनाड्स काम-विकास की ग्रन्थि है, दोनों विरोधी तत्त्व, अर्थात् वासना और विवके हमारी संरचना में समाए हुए हैं। व्यक्ति को इन दोनों तत्त्वों को स्वीकार करना होगा। विरोधी युगल नहीं होगा, तो जीवन भी समाप्त हो जाएगा, क्योंकि जीवन है, तो मृत्यु भी है, ऊँचा है, तो नीचा भी है, बन्धन है, तो मुक्ति के अस्तित्व को भी स्वीकार करना पड़ेगा। अनेकांत के तीसरे स्वरूप में वस्तुतत्त्व की अनेकांतिकता को स्वीकार करने का कथन मिलता है। एक ही वस्तु में रहे हुए अनन्त गुणों में से समय-समय पर कुछ गुणधर्म प्रकट होते हैं और कुछ गौण रहते हैं, जैसे- कच्चे आम में खट्टापन व्यक्त रहता है और मीठापन गौण होता है, कालान्तर में मीठापन प्रमुख हो जाता है और खट्टापन गौण हो जाता है, इसी प्रकार, एक बालक में उत्तम बुद्धिलब्धि होने पर भी समझ अविकसित रहती है, कालान्तर में वह विकसित हो जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि व्यक्ति में विकास की अनन्त सम्भावनाएँ हैं, उन्हीं अविकसित सम्भावनाओं को विकसित करना- यही प्रबंधन की
559 तैत्तिरीयोपनिषद, 2/6
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