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________________ 272 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति कान आदि। आचार्य हरिभद्र ने बाह्य परिग्रह के निम्न नौ भेद कहे हैं - 1. क्षेत्र - खेत या खुली भूमि आदि । वास्तु – मकान, दुकान आदि। हिरण्य – चांदी के सिक्के, आभूषण आदि। स्वर्ण – स्वर्णमुद्रा या स्वर्ण निर्मित वस्तुएँ आदि। धन - हीरा, पन्ना, माणक, मोती आदि। 6. धान्य – गेहूँ, चावल, मूंग आदि। . 7. द्विपद – नौकर-नौकरानी, दास-दासी आदि। चतुष्पद – गाय, भैंस आदि चार पैर वाले पशु। कुप्य – घर-गृहस्थी का सामान आभ्यंतर-परिग्रह के चौदह भेद बताए गए हैं - मिथ्यात्व, राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा और वेद (काम-वासना)। परिग्रह की सत्ता ममत्ववृत्ति आदि पर निर्भर है। ममत्ववृत्ति, आसक्ति या मूर्छाभाव ही परिग्रह है। आचारांग में कहा गया है - ___ “जे ममाइ मई जहाई, से चयइ ममाइयं ।, से हु दिट्ठपहे मुणि जस्स नत्थि ममाइयं ।। जो व्यक्ति ममत्वभाव का परित्याग करता है, वह स्वीकृत परिग्रह का त्याग कर सकता है। ममत्वबुद्धि बाह्य-वस्तुओं के प्रति व्यक्ति की ग्रहणबुद्धि-रूप है। ग्रहणद्धि कहीं-न-कहीं इच्छा या ममत्वरूप ही होती है और जहाँ इच्छा है, वहाँ तनाव है, अतः परिग्रह के साथ तनाव जुड़ा हुआ है। यदि तनावों से मुक्त होना है, तो परिग्रह से मुक्त होना होगा। यहाँ हमें वस्तु के उपयोग और परिग्रह का अन्तर समझ लेना आवश्यक है। उपयोग - किसी वस्तु का भोग व उपभोग करना उपयोग है। 538 आवश्यक हरिभद्रीयवृत्ति, अ. 6 539 आचारांगसूत्र प्रथम श्रुतस्कंध - 2/6/99 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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