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________________ 246 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्तिः जैन-दर्शन में मोक्षप्राप्ति के उपाय भी बताया है और मोक्ष ही पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था है। धर्मध्यान - _ 'श्रुतधर्म और चारित्रधर्म के चिन्तन में चित्त की एकाग्रता का होना धर्मध्यान है।482 श्रुतधर्म का अर्थ है- आगमों में वर्णित उपदेशों का . या तीर्थकरों की आज्ञा का चिन्तन करना और चारित्रधर्म का अर्थ हैआगमों में दिए गए आचार का अर्थात् जिनाज्ञा का पालन करना। ___ इसका तात्पर्य यही है कि साधक यह चिन्तन करे कि उसके लिए क्या करणीय या आचरणीय है और क्या अकरणीय या अनाचरणीय है। इस प्रकार, धर्मध्यान का आलम्बन लेकर व्यक्ति तनावों से मुक्त हो सकता है, क्योंकि जिनाज्ञा इच्छाओं और आकांक्षाओं से ऊपर उठने में ही है। धर्मध्यान के भेद – धर्मध्यान के चार भेद बताए गए हैं - आज्ञाविचय – जिनाज्ञा के चिन्तन में संलग्न रहना और उसके पालन में तत्पर रहना। अपायविचय - संसार के पतन के कारणों का विचार करते हुए उनसे बचने के उपाय करना। विपाकविचय – अच्छे-बुरे कर्मों के फल का विचार करना। संस्थानविचय - · जन्म-मरण के आधारभूत पुरुषाकार इस लोक के स्वरूप का चिन्तन करना। उपर्युक्त चारों प्रकारों का विवेचन इसी अध्याय में पूर्व में भी किया जा चुका है, यहाँ मात्र इतना कहना ही काफी होगा कि ये चारों प्रकार व्यक्ति को तनावमुक्त करने में सहायक बनते हैं, किन्तु ये सहायक तभी बन सकते हैं, जब व्यक्ति धर्मध्यान की साधना में प्रवृत्त हो, अर्थात् तनाव का प्रबन्धन करे। 482 स्थानांगसूत्र - 4/1/65 . 483 स्थानांगसूत्र-4/1/65 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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