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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 221 of the situation, to view it in a different light, and to modify your attitudes towards it. अर्थात, जब तनाव की स्थिति अनियंत्रित हो, तो कोई दूसरा तरीका अपना लेना चाहिए, जिसमें खतरा कम हो। जैन-दृष्टिकोण - तनाव को कम या समाप्त करने के लिये मनोवैज्ञानिकों ने जो विधियाँ प्रस्तुत की हैं, उनमें से कुछ विधियाँ जैनचिन्तकों ने भी स्वीकृत की हैं। इन विधियों में सर्वप्रथम बाधा निवारण को स्थान दिया गया है। जैनदर्शन का मानना है कि बाधाएँ उसी लक्ष्य की प्राप्ति में आती है, जो 'पर' आश्रित और बाह्य होता है, अतः उसका मानना है कि व्यक्ति को बाधा-निवारण के स्थान पर लक्ष्य को ही ‘पर आश्रित से 'स्व' आश्रित बनाना चाहिए। यदि लक्ष्य आध्यात्मिक या स्व-आश्रित होगा, तो उसमें बाह्य-बाधाएं नहीं होंगी, केवल आत्मिक-शक्ति या मनोबल के विकास से उसकी बाधाएं दूर की जा सकती है। इस प्रकार, जैनदर्शन बाधा निवारण के स्थान पर लक्ष्य-प्रतिस्थापन को अधिक महत्व देता है। जहाँ तक व्याख्या एवं निर्णय-विधि का प्रश्न है, जैनदर्शन का मानना है कि सम्यकदर्शन, और सम्यज्ञान के आधार पर हमें अपने लक्ष्य के औचित्य या अनौचित्य का निर्धारण तथा उसकी सम्यक्ता पर पूर्ण विचार करके ही अपने लक्ष्य का निर्धारण करना चाहिए। जैनदर्शन का मानना है कि सम्यक्-दृष्टि व्यक्ति ही अपने सम्यक्-ज्ञान के आधार पर सस्यक् आध्यात्मिक-लक्ष्य का निर्धारण कर तनावों से मुक्त रह सकता है, क्योंकि व्यक्ति की सबसे बड़ी भ्रान्ति इसी में होती है कि वह सम्यक् लक्ष्य का निर्धारण नहीं कर पाता है। अतः, जैनदर्शन की प्राथमिक मान्यता यह है कि जीवन के लक्ष्य निर्धारण के पूर्व सम्यक-दृष्टिकोण और सम्यक-ज्ञान का विकास आवश्यक है। तनाव के उत्पन्न होने का मुख्य कारण जीवन के लक्ष्य का गलत निर्धारण होता है। हम इच्छाओं या वासनाओं से प्रभावित होकर गलत लक्ष्य का निर्धारण कर लेते हैं। जहाँ तक तनाव-निराकरण की अप्रत्यक्ष मनोवैज्ञानिक-विधियों का प्रश्न है, वे भी मूलतः सम्यक्-दृष्टिकोण और सम्यक-ज्ञान पर ही आधारित हैं। इनमें जैनदर्शन लक्ष्य-शोधन को ही मुख्यता देता है, उसके साथ ही वह जीवन में यदि व्यक्ति ने भौतिक-लक्ष्य का निर्धारण For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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