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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति असफलता प्राप्त करने पर अपने तनाव को यह कहकर कम करता है कि शिक्षक ने ठीक ढंग से पढ़ाया नहीं या घरेलू प्रतिकूलताओं के होने के कारण परीक्षा की अवधि में वह अधिक चिन्तित था । (ज) क्षतिपूर्ति बाह्य - हानि से व्यक्ति को मानसिक - क्षति भी होती है। जब तक उस हानि या नुकसान की क्षतिपूर्ति नहीं होती है, तब तक वह मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होता है। तनाव को कम या समाप्त करने के लिए व्यक्ति को अन्य साधनों से उसकी क्षतिपूर्ति करने का प्रयास करना चाहिए। तनाव का कारण चाहे जो भी हो, वह व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को खराब कर देता है, इसलिए इसे समाप्त करने के या कम करने के उपाय पर मनोवैज्ञानिकों ने गंभीरता से विचार किया है। लेजारस एवं फौल्कमैन (Lazarus folkman, 1984) के अनुसार वे कुछ उपाय निम्न हैं 419 (i) पूर्वकथन इस उपाय के तहत व्यक्ति पहले से ही अपना मानस ऐसा बना लेता है कि लक्ष्य-पूर्ति करते समय बाधाएँ आ सकती हैं, या तनाव उत्पन्न हो सकता है। व्यक्ति यह पूर्वकथन करता है कि परिस्थितियाँ विकट हैं, वह सामना कैसे करेगा? ऐसा करने से तनावपूर्ण स्थिति आने पर भी व्यक्ति सही ढंग से उसका सामना कर सकता है, क्योंकि उसे यह मौका मिल जाता है कि वह गंभीरता से उस स्थिति पर विचार कर सके, जैसे- फौजी युद्ध में जाने से पहले हमले किस-किस तरह से हो सकते हैं और कौनसी स्थिति में कैसे आक्रमण करना है, इस पर विचार कर स्वयं को उस परिस्थिति के अनुरूप बना लेता है और समय आने पर वह तनाव को बढने नहीं देता है । (ii) व्यवहारात्मक-उपाय इस उपाय में व्यक्ति अपने व्यवहार को बदल लेता है । वह ऐसे कार्य करने लगता है, जिससे उसे तनाव की अनुभूति कम हो, जैसे- अन्य बातों में ध्यान लगाना तथा शराब, सिगरेट आदि अधिक मात्रा में पीना, या फिर किन्हीं सामाजिक या भावनात्मकव्यक्तियों के सम्पर्क में रहना, जो उसका समर्थन कर सकें । (iii) प्रतिक्रिया - निर्माण इसमें व्यक्ति तनाव उत्पन्न करने वाली इच्छा या विचार के ठीक विपरीत इच्छा या विचार विकसित करके तनाव को कम करता है। भ्रष्टाचार से चिन्तित एवं तनावग्रस्त नेता प्रायः - Jain Education International 219 - 419 Internal and external determination of behaviour, Lazarus and Lanuier, Page 311 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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