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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
समाप्त होती है। जब बुद्धि की जड़ता समाप्त होगी, तो उससे सही समझ एवं सही सोच-विचार करने की क्षमता बढ़ जाएगी, जो तनावमुक्ति में सहायक होगी।
3. सुख - दुःख तितिक्षा कायोत्सर्ग से देह और आत्मा की पृथकता का पूर्ण विश्वास हो जाता है, अतः व्यक्ति का देह के प्रति ममत्वभाव कम होने लगता है। इससे उसमें सुख - दुःख सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है और वह दुःख को समभाव से सहन कर अपने मानसिक संतुलन को विकृत नहीं होने देता है ।
4. अनुप्रेक्षा प्रेक्षाध्यान के प्रत्येक अनुष्ठान के पूर्व कायोत्सर्ग किया जाता है। कायोत्सर्ग से व्यक्ति अनुप्रेक्षा एवं प्रेक्षा - प्रक्रिया को स्थिरतापूर्वक कर सकता है।
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5. ध्यान कायोत्सर्ग से शुभध्यान का अभ्यास सहज हो जाता है। इस प्रकार तनावमुक्ति ध्यान-साधना की पहली शर्त है। कायोत्सर्ग के अन्य कई लाभ हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य कायोत्सर्ग से तनावमुक्ति ही है । 6. कायोत्सर्ग से अल्फा तरंग विकसित होती है। 395 कायोत्सर्ग से पूर्णतः तनाव मुक्ति मिल सकती है।
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यदि विज्ञान के संदर्भ में इसे समझने का प्रत्यन करें, तो यह . बात सिद्ध हो जाती है, क्योंकि मस्तिष्क में कई तरंगें हैं- अल्फा, बीटा, थीटा, गामा आदि । जब-जब अल्फा तरंगें होती है, मानसिक तनावों से मुक्ति मिलती है, शांति का अनुभव होता है। कायोत्सर्ग में अल्फा तरंगों को विकसित होने का मौका मिलता है। कायोत्सर्ग किया और अल्फा तरंगें उठने लगती हैं, फलतः मानसिक - तनाव घटने लगता है ।
7. चित्तशुद्धि - तनावमुक्ति से चित्त - विशुद्धि होती है । चित्त की शुद्धि होना और चित्त की शुद्धि के लिए शरीर की स्थिरता का होना आवश्यक है । शरीर की स्थिरता हुए बिना चित्त की स्थिरता सम्भव नहीं हो सकती है, क्योंकि उस स्थिति में मन शांत नहीं होता, स्मृतियां शांत नहीं होती, कल्पनाएं समाप्त नहीं होती और तनावग्रस्ता अधिक बढ़ जाती है । कायोत्सर्ग में शरीर को स्थिर करने का प्रयास किया जाता हैं। शरीर के स्थिर होने से वाणी को भी विराम मिलता है। वाणी शारीरिक - अवयवों की चंचलता के बिना सम्भव नहीं है। वाणी का विराम मिलने पर मन के
महावीर का स्वास्थ्य शास्त्र, महाप्रज्ञ, पृ. 108
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