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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
17.
पद्धति से अवगत कराया, वह प्रतिपल स्मरणीय हैं। उनके सहयोग व शिक्षा ने मेरे शोधकार्य को आगे बढ़ाया ।
इसके अतिरिक्त मैं जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति समणी मंगलप्रज्ञाजी, वर्तमान कुलपति समणी. चारित्रप्रज्ञाजी, आदरास्पदा समणी कुसुमप्रज्ञाजी, समणी चैतन्यप्रज्ञाजी, समणी ऋतुप्रज्ञाजी ........ आदि सभी के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ, जिन्होंने समय-समय पर उचित मार्गदर्शन और सहयोग देकर मुझे प्रोत्साहित किया है।
जिनके सान्निध्य में रहकर जीवन के अनेक क्षेत्रों में मार्गदर्शन मिलता रहा है, हिन्दी व अंग्रेजी भाषा के ज्ञान में वृद्धि हो रही है, ऐसी मेरी धर्मबहिनें आदरणीया मुमुक्षु डॉ. शांता जैन एवं सुश्री वीणा जैन का स्नेहिल सहयोग व प्रेरणा सदैव मिलती रही है। आप दोनों का सहयोग, स्नेह एवं मार्गदर्शन सदैव मुझे मिलता रहे ऐसी मेरी आशा है।
शोधकार्य को पूरी लगन के साथ करने के लिए प्रेरित व प्रमाद को दूर करने में मेरे चाचा श्रीमान पियुष जी जैन एवं चाची श्रीमती चित्रा जैन, मेरी बहनें एवं मेरे भाई निखिल जैन, अखिल जैन, हर्ष चौपड़ा, राहुल कांकरिया, शीतल जैन एवं अन्य परिजन, जो भी सहयोगी रहे, उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ।
इस कार्य का श्रेय जैन धर्मदर्शन के मूर्धन्य विद्वान्, आगम मर्मज्ञ, भारतीय-संस्कृति के पुरोधा डॉ. सागरमलजी जैन को है, जिन्होंने इस शोधप्रबन्ध के. मेरे सपने को साकार करने में पूर्णरूपेण सहयोग दिया और विषयवस्तु को अधिकाधिक प्रासंगिक, उपादेय बनाने हेतु सूक्ष्मता से देखा-परखा और आवश्यक संशोधनों के साथ मार्गदर्शन प्रदान किया। यद्यपि वे नाम-स्पृहा से पूर्णतः विरत हैं, तथापि इस कृति के प्रणयन के मूल आधार होने से इसके साथ उनका नाम सदा- सदा के लिए स्वतः जुड़ गया है। वे मेरे शोध-प्रबन्ध के दिशा-निर्देशक ही नहीं हैं, वरन् मेरे आत्मविश्वास के प्रतिष्ठाता भी हैं। उनका वात्सल्यभाव एवं असीम आत्मीयता मेरे जीवन का गौरव है, जो आजीवन बना रहे, यही प्रभु से प्रार्थना है। .
"मध्यप्रदेश की काशी' के नाम से प्रसिद्ध, प्राकृतिक सौंदर्य के • मध्य स्थित सुरम्य "प्राच्य विद्यापीठ' का विशाल पुस्तकालय एवं सुविधाओं से युक्त शान्त वातावरण इस लक्ष्य की प्राप्ति में सर्वाधिक
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