________________
182
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
शरीर में शिथिलता के साथ चैतन्य का निरन्तर अनुभव करें। समय - एक मिनट से पांच मिनट तक। साधना में विकास की दृष्टि से पैंतालीस मिनट का अभ्यास किया जा सकता है। श्वास-प्रश्वास मंद और शांत रखें। लाभ - शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक-तनावों से मुक्ति प्रदान करता है। भगवान् महावीर ने कायोत्सर्ग को समस्त दुःखों से मुक्ति प्रदान करने वाला बताया है- सव्व दुक्ख विमोक्खणं काउस्सग्गं। प्रत्येक अवयव में स्फूर्ति उत्पन्न होती है। कायोत्सर्ग से देह एवं बुद्धि की जड़ता नष्ट होती है, एकाग्रता बढ़ती है, कलह उपशान्त होता है। कायोत्सर्ग से विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं। 2. मत्स्यासन -
सर्वांगासन, हलासन के तुरन्त पश्चात मत्स्यासन किया जाता है। यह आसन मत्स्य (मछली) की आकृति से मिलता है, अतः इसे मत्स्यासन कहा गया है। इस आसन में पानी पर मत्स्य के सदृश स्थिर रहा जा सकता है। नाक पानी से ऊपर रहती है, अतः डूबने की स्थिति नहीं बनती। तैराक योगी इस आसन में घण्टों पानी में पड़े रहते हैं।
विधि - पद्मासन की स्थिति में बैठे। लेटने की मुद्रा में आने के लिए हाथों की कुहनी को धीरे-धीरे पीछे ले जाएं। पीठ पीछे झुकेगी।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org