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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
लेटकर किये जाने वाले आसन
कायोत्सर्ग
शरीर को शिथिल और तनावमुक्त करें। इस स्थिति को शव की तरह होने से शवासन भी कहते हैं, किन्तु कायोत्सर्ग और शवासन में मौलिक अन्तर है। बाहर से दोनों क्रियाएं समान दिखाई देती हैं, किन्तु शव - आसन मुर्दे की तरह जड़वत होने की अवधारणा प्रदान करता है। जबकि कायोत्सर्ग में शरीर का विसर्जन अर्थात् शरीर के प्रति जो ममत्व और पकड़ है, उसे छोड़ना होता है, चैतन्य को निरन्तर जाग्रत रखना होता हैं ।
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श्वास-प्रश्वास पर चित्त को एकाग्र कर प्रत्येक अवयव को शिथिलता का सुझाव देते हैं। शिथिलता का अनुभव करते हैं । कायोत्सर्ग लेटकर, बैठकर और खड़े-खड़े भी किया जा सकता है। आरम्भ में लेटकर कायोत्सर्ग करने में सुविधा रहती है। लेटकर शिथिलता सधने पर बैठकर और खड़े-खड़े कायोत्सर्ग का अभ्यास किया जा सकता है।
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विधि लेटकर कायोत्सर्ग करने के लिए शरीर को पीठ के बल लेटा दें। दोनों हाथों को शरीर के समानांतर फैलाएँ। हथेलियां आकाश की ओर खुली रखें। दोनों पैरों के बीच एक फुट का फासला रखें। शरीर को ढीला छोड़ दें।
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दाहिने पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक प्रत्येक अवयव पर चित्त को क्रमशः केन्द्रित करें। शिथिलता का सुझाव दें।
शरीर शिथिल हो जाए ।
शरीर शिथिल हो रहा है ।
अनुभव करें, शरीर शिथिल हो गया है।
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