________________
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
1. द्रव्य - लेश्या द्रव्य - लेश्या को उसके वर्ण, गंध, रस आदि के पौद्गलिक - आधार पर छः भागों में बांटा गया है । द्रव्य - लेश्या पौद्गलिक है । " द्रव्य - लेश्या सूक्ष्म भौतिक तत्त्वों से निर्मित वह आंगिक रचना है, जो हमारे मनोभावों का सापेक्ष रूप में कारण अथवा कार्य बनती है। "307 जिस प्रकार पित्त - द्रव्य की विशेषता से स्वभाव में क्रोधीपन आता है और क्रोध के कारण पित्त का निर्माण बहुल रूप में होता है, उसी प्रकार इन सूक्ष्म भौतिक तत्त्वों से मनोभाव बनते हैं और मनोभाव के होने पर इन भौतिक सूक्ष्म संरचनाओं का निर्माण होता है, जिसे हम द्रव्य लेश्या कहते हैं। द्रव्य - लेश्या का सम्बन्ध शरीर से है। अगर शारीरिक संरचना में असंतुलन होता है, तो उसका असर मन पर भी पड़ता है । द्रव्य मन भी एक प्रकार की शारीरिक संरचना है, अतः वह भी असंतुलित अथवा विचलित हो जाता है। इस प्रकार, द्रव्य - लेश्या से . मनोभाव बनते हैं और मनोभावों से द्रव्य - लेश्या । इसका उदाहरण हम पूर्व में दे चुके हैं।
156
2. भाव - लेश्या वैसे तो द्रव्य - लेश्या के बिना भाव लेश्या और भाव - लेश्या के बिना द्रव्य लेश्या नहीं होती, दोनों ही एक-दूसरे से प्रभावित होती हैं, फिर भी भावलेश्या का स्वरूप द्रव्य - लेश्या से बिल्कुल भिन्न है। "जहाँ द्रव्य - लेश्या पौद्गलिक - वर्गणाएँ हैं, वहाँ भावलेश्या चैत्तसिक - परिणमन है। 308 जिस प्रकार वर्णों के आधार पर छः लेश्याओं का विभाजन किया गया है, उसी प्रकार मनोभावों के स्तर के अनुसार भी उन छः लेश्याओं के पौद्गलिक-स्वरूप को समझाया गया है। भावलेश्या का आवेगों की अपेक्षा से जैसा तीव्रतम, तीव्रतर, तीव्र, मन्द, मन्दतर और मन्दतम स्तर होगा, वैसा ही व्यक्ति के मानसिक तनावों का स्तर होगा।
मनोभावों की अशुभ से शुभ की ओर या तनावों की तीव्रता से मन्दता की ओर बढ़ने की स्थितियों के आधार पर ही उन लेश्याओं के विभाग किए गए हैं। "उत्तराध्ययनसूत्र में निम्न छह लेश्याओं के नाम वर्णित हैं – 1. कृष्ण, 2. नील, 3. कापोत, 4. तेज, 5. पद्म, 6. शुक्ल ।
307
जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग 1, पृ. 512
308
लेश्या और मनोविज्ञान - भू. डॉ. शान्ता जैन, पृ. 39
309
उत्तराध्ययनसूत्र
34/3
Jain Education International
-
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org