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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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तनावमुक्ति की प्रक्रिया धीरे-धीरे तेजो लेश्या से शुक्ल लेश्या की ओर अग्रसर होती है। शुक्ल लेश्या में व्यक्ति पूर्णतः तनावमुक्त स्थिति का अनुभव करता है। इस स्थिति में देह का त्याग करने पर जीव विविध सुगतियों में उत्पन्न होता है।05
- सुगति में वही व्यक्ति जा सकता है, जिसका व्यवहार और स्वभाव निर्मल हो, जिसका मानसिक-संतुलन स्थिर हो, जो विवेकशील और सभी से आत्मवत् वात्सल्यभाव रखता हो। यहाँ हमने अशुभ तथा शुभ-लेश्याओं के स्वरूप को और उनका तनाव से सह-सम्बन्ध को बताया है। लेश्याओं के विभिन्न प्रकारों का वर्णन और के तनाव के साथ सह-सम्बन्ध आगे बतलाया जाएगा।
यह व्यक्ति की प्रवृत्ति पर ही निर्भर होता है कि वह तनावयुक्त रहे या तनावमुक्त। व्यक्ति की प्रवृत्ति ही उसकी लेश्या बनती है। व्यक्ति जब कभी अच्छी प्रवृत्ति करता है, अच्छा चिन्तन करता है, अच्छे भाव रखता है और अच्छे कार्य करता है, तब उसकी शुभ लेश्या होती है, या यह कहा जाए कि तनावों की अतिल्पता की. स्थिति होती है। व्यक्ति जब कभी बुरी प्रवृत्ति करता है, बुरा चिन्तन करता है, बुरे भाव रखता है, और बुरे कार्य करता है, तो उसको अशुभ लेश्या उदय में आती है या नई अशुभ लेश्या निर्मित हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति तनावयुक्त हो जाता है। ... मन की चंचलता तनाव पैदा करती है और मन की चंचलता से ही लेश्या भी निर्मित होती है। मन में जैसे भाव होते हैं, वैसी ही. हमारी लेश्या होती है। मनोभाव बार-बार बदलते रहते हैं, विचार बार-बार बदलते रहते हैं और शुभाशुभ भावों के उतार-चढ़ाव में व्यक्ति कभी स्वयं को तनावमुक्त और कभी तनावग्रस्त अनुभव करता है। इन्हीं भावों के आधार पर व्यक्ति के तनाव का स्तर लेश्याओं के द्वारा जाना जा सकता हैं। ... लेश्या के प्रकार एवं तनाव का स्तर -
जैनागमों में लेश्या दो प्रकार की मानी गई है06 - 1. द्रव्य- लेश्या और 2: भाव-लेश्या।
305 वही, 34/57 . 306 भगवतीसूत्र - 15
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