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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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अत्यधिक होता है। यह तनाव की वह स्थिति है, जिससे व्यक्ति आजीवन चिंतित एवं अशांत बना रहता है। निमित्त मिलने पर क्रोधादि की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है और जैसे-जैसे कषाय की वृद्धि होती है, प्रतिक्रियाएँ भी बढ़ती जाती हैं और तनाव का स्तर भी बढ़ जाता है।
श्वेताम्बर ग्रन्थों में अनन्तानुबन्धी-कषाय का काल जीवन-पर्यन्त बताया गया है, अर्थात् व्यक्ति जीवन-पर्यन्त तनावग्रस्त रहता है। 25 अनन्तानुबन्धी का अर्थ है- जो अनन्तकाल से अनुबन्धित है, अर्थात् जो अनन्तकाल तक संसार में भ्रमण का कारण है, वह अनन्तानुबन्धी-कषाय है। अनन्तानुबन्धी-कषाय एक बार उत्पन्न होने पर इतनी प्रगाढ़ होती है कि व्यक्ति को तीव्रतम तनाव से ग्रस्त बना देती है, जिससे उभर पाना बहुत मुश्किल होता है। तनाव की यह स्थिति व्यक्ति के पागल होने की स्थिति है। जिस प्रकार एक चुम्बक के दो टुकड़े होने पर वह अलग दिशार्थी बन जाते हैं, अर्थात् कभी जुड़ नहीं सकते, उसी प्रकार अनन्तानुबंधी-कषाययुक्त व्यक्ति भी मिथ्यात्व-दशा में ही सुख की या तनावमुक्ति की खोज करता है। वह दिशा ही बदल देता है और उसी
ओर अग्रसर होता है, जहां मानसिक-संतुलन का अभाव होता है। वह निरन्तर प्रतिक्रिया करता रहता है। __अनन्तानुबंधी कषाय वाला व्यक्ति अतृप्त कामना वाला होता है और जहाँ अतृप्त कामना होती है, वहां व्यक्ति में क्रोध, मान, माया और लोभ' की प्रवृत्ति इतनी गहरी होती है कि उसकी दृष्टि सम्यक् होने में अनन्त भव लग जाते हैं। अनन्तानुबंधी कषायें सम्यकदर्शन की विघातक होती हैं।
तनाव के मुख्य कारणों में से एक कारण सुखों की अतृप्त कामना ही है और यह अतृप्त कामना ही अनन्तानुबन्धी-कषाय है। व्यक्ति अपनी कामना को प्राप्त करने में बाधक तत्त्वों पर क्रोध करता है। मनोज्ञ पदार्थों पर अधिकार प्राप्त होने पर गर्व अर्थात् मान करता है, अधिकार न मिलने पर अहं के लिए माया (कपटवृत्ति) का आश्रय लेता है। अनेक पदार्थों या व्यक्तियों पर इष्टानिष्ट भाव रखते हुए सुख की प्राप्ति के लिए वह सदैव चिंतित रहता है और प्रिय वस्तु या व्यक्ति का संयोग नहीं मिलने पर अपना मानसिक-संतुलन खो देता है।
255 जावज्जीवाणुगमिणो - विशेष. गाथा-2992 256 कषाय - हेमप्रभाश्री - पृ. 40 .
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