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________________ अध्याय १ : मोक्षमार्ग ६१ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अवधिज्ञान तथा मनःपर्याज्ञान में किनकिन बातों का अन्तर है, इसका सूचन किया गया है । इन अन्तरों को इस प्रकार समझा जा सकता है - (१) मनःपर्यायज्ञान अवधिज्ञान की अपेक्षा अधिक विशुद्ध होता है । चूंकि मनःपर्यायज्ञानी की अन्तर् विशुद्धि अवधिज्ञानी से अधिक ही होती हैं अतः यह अपने विषय को अधिक गहराई से, विशुद्ध रूप से जानता है । (२) अवधिज्ञान का क्षेत्र तीन लोक है, यानी यह तीन लोक के रूपी पदार्थो को जान सकता है। जबकि मनःपर्यायज्ञान का क्षेत्र अवधिज्ञान की अपेक्षा अल्प है, वह मध्य लोक में ढाई द्वीप तक, नीचे क्षुल्लक प्रतर तक और ऊपर मैं ज्योतिष्क मण्डल से कुछ ऊपर तक ही जानता है । (३) अवधिज्ञान के स्वामी चारों गति के जीव होते हैं/हो सकते हैं, वे मिथ्यादृष्टि भी हो सकते हैं और सम्यक्त्वी भी, संयत भी और असंयत भी; जबकि मनःपर्यायज्ञान के स्वामी केवल कर्मभूमि में उत्पन्न हुए मनुष्य और उनमें भी संयमी, सम्यग्यदृष्टि ही होते हैं । . (४) अवधिज्ञान का विषय रूपी पदार्थ कुछ पर्याय सहित हैं; जबकि मनःपर्यायज्ञान का विषय उसका अनन्तवाँ भाग ही हैं, वह केवल संज्ञी जीवों के मन की पर्यायों को जानता है । (५) अवधिज्ञान, विपरीत यानी कुअवधि/विभंग भी हो सकता है जबकि मनःपर्यायज्ञान कभी विपरीत नहीं होता, यहाँ तक कि मनःपर्यायज्ञान की विद्यमानता में मिथ्यात्व का उदय भी संभव नहीं है ।। (६) अवधिज्ञान आत्मा के साथ अगले जन्म में भी जा सकता है; जबकि मनःपर्यायज्ञान नहीं जा सकता । यानी अवधिज्ञान उभयभविक भी हो सकता है; किन्तु मनःपर्यायज्ञान इहभविक हैं । इसका कारण यह है कि मनःपर्यायज्ञान · संयमसापेक्ष है, संयम के अभाव में नहीं टिकता । किन्तु अवधिज्ञान को संयम की अपेक्षा नहीं है, इसलिए वह जीव के साथ अगले भव में भी जा सकता है ।। यह अवधिज्ञान और मनःपर्यायज्ञान के प्रमुख भेद हैं । आगम वचन - दव्वओ णं आभिणिबोहियणाणी सव्वाइं दव्वाइं जाणइ, न पासई.... भावओ सव्वे भावे जाणइ, न पासई । - नन्दी सूत्र ६५, मतिज्ञान विषय वर्णनाधिकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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