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________________ ५० तत्त्वार्थ सूत्र ( अवग्रह मतिज्ञान छह प्रकार का होता है - (१) क्षिप्र (२) बहु (३) बहुविध, (४) ध्रुव (५) अनिश्रित और (६) असंदिग्ध । इसी प्रकार ईहा मतिज्ञान तथा इसी प्रकार अवाय मतज्ञान भी छह प्रकार का होता है । धारणा मतिज्ञान भी छह प्रकार का होता है - (१) बहुधारणा, (२) बहुविध धारणा (३) पुराण (पुराना) धारणा (४) दुर्धर धारणा (५) अनिश्रित धारणा और (६) असंदिग्ध धारणा मतज्ञान | :) जं बहु बहुविह खिप्पा अणिस्सिय निच्छिय धुवेयर विभिन्ना, पुणरोग्गहादओ तो तं छत्तीसत्तिसय भेदं । - इयि भासयारेण __ (बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिश्रित, निश्रित और ध्रुव इनके छह उलटे भेद भी होते हैं । इन सबको जोड़ने से मतिज्ञान के ३३६ भेद होते हैं ऐसा भाष्यकार का कथन हैं । ) अवग्रह आदि के उपभेद - बहु-बहुविध-क्षिप्रानिश्रितासंदिग्धधु वाणां सेतराणाम् ।१६। (१) बहु, (२) बहुविध, (३) क्षिप्र, (४) अनिश्रित, (५) असंदिग्ध, और (६) ध्रुव - इन छह प्रकार के पदार्थों का तथा (सेतराणाम्-प्रति-पक्ष सहित (१), अल्प, (२) एकविध, (३) अक्षिप्र, (४) निश्रित, (५) असंगिद्ध और (६) अध्रुव इन छह को मिलाकर-१२ प्रकार के पदार्थों का अवग्रह, ईहा आदि रूप ग्रहण अथवा ज्ञान (मतिज्ञान) होता है । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अवग्रह आदि के उपभेदों का वर्णन किया गया है । । (१) बहु - शंख, बांसुरी आदि अनेक प्रकार के शब्दों को ग्रहण करना (२) अल्प - यह 'बहू' का विपरीत है । इसे 'एक' भी कहा जाता है । इसका अभिप्राय शंख, बांसुरी आदि अनेक शब्दों में से एक शब्द को ग्रहण करने की क्षमता अथवा योग्यता है। (३) बहुविध - अनेक शब्दों के माधुर्य आदि को ग्रहण करने की क्षमता । (४) अल्पविध - थोड़े या एक प्रकार के शब्द की कठोरता, कर्कशता, माधुर्य आदि को ग्रहण करने की क्षमता । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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