________________
अध्याय १ : मोक्षमार्ग ३१
( सद्भाव पदार्थ नौ प्रकार के कहे गये हैं
(१) जीव, (२) अजीव, (३) पुण्य, (४) पाप, (५) आस्त्रव, (६) संवर, (७) निर्जरा, (८) बंध और (९) मोक्ष ।)
तत्वों के नाम
जीवाजीवास्त्रव-बंध - संवर - निर्जरा - मोक्षास्तत्त्वम् ॥४।
(१) जीव, (२) अजीव, (३) आस्त्रव, (४) बंध, (५) संवर, (६) निर्जरा, (७) मोक्ष - यह सात तत्त्व है ।
विवेजन
आगम में ९ तत्त्व अथवा पदार्थ बताये हैं; जबकि प्रस्तुत सूत्र में इनकी संख्या ७ दी गई है । इनमें मौलिक भेद कुछ भी नहीं हैं । कथन शैली का ही भेद है ।
-
सूत्र की रचना संक्षिप्त शैली में होती है अतः पुण्य और पाप दो पदार्थों को आस्त्रव में गर्भित कर लिया गया है ।
-
सात और नौ तत्त्वों (पदार्थों) के लिए इन दो संख्याओं का व्यवहार आगमानुमोदित है । ¿
जीव है ।
नौ तत्त्व कहे जायें अथवा नौ पदार्थ, या सात तत्त्व ही कहे जायें सभी का वाच्यार्थ समान है, कोई अन्तर नहीं है ।
इसका लक्षण चेतना है, अर्थात् जिसमें चेतना है, वह
(१) जीव
है ।
(२) अजीव जिसमें चेतना का अभाव है, वह अजीव कहलाता है । अजीव तत्त्व पांच हैं - (१) पुद्गल, (२) धर्म, (३) अधर्म, (४) आकाश और (५) काल' । इनमें से पुद्गल रुपी (रूपवान ) है और शेष सब अरूपी हैं । रूपी का अभिप्राय हैं जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण हो । शुभाशुभ कर्मों के आने के द्वार को आस्त्रव कहते
(३) आस्त्रव
-
Jain Education International
-
(४) बंध आत्मा के प्रदेशों में कर्म-दलिकों का प्रवेश हो जाना, सम्बद्ध हो जाना बन्ध है ।
(६) निर्जरा पृथक् हो जाना ।
1
-
(५) संवर आस्त्रवों (कर्मों के आगमन) का रुकना ।
-
-
आत्मा के साथ सम्बद्ध कर्मदलिकों का फल देकर
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org